जाननहार ही सहज जनावे,
निश्चय अनुभव आये।। टेक।।
अखिल विश्व निज मर्यादा में,
सदा परिणमित होता।
आतम भी निज मर्यादा में,
निश्चय नहीं पर ज्ञेयों का ज्ञाता होता।।
भेद नहीं ज्ञायक का ज्ञायक,
अभेद ज्ञायक भाये।।1।
ज्ञेय लुब्धता त्याग सहज,
सन्तुष्ट रहें निज ज्ञायक में।
निजानन्द रस आस्वादी हो,
तृत्त रहें निज ज्ञायक में।।
पाने योग्य स्वयं में पायें,
स्वयं सिद्ध हो जायें।।2।
Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: स्वरूप-स्मरण