जय-जय मुनिवर विष्णुकुमार, गुरुवर धर्म के रक्षणहार ।।टेक।।
दुष्ट बली जब कुमति उपाई, संघ घेर नरमेघ रचाई।
मच गया गजपुर हाहाकार ।। 1 ।।
संघ उपसर्ग की खबर सु-पाकर, पुष्पदंत मुनि अति घबराकर।
आकर तुमसे करी पुकार ।।2।।
गुरु तुम वीतरागता धारी, विक्रिया ऋद्धि प्रकट भई भारी।
उमड़ा वात्सल्य सुखकार ।।3।।
बौने द्विज का वेष बनाया, चमत्कार तप का दिखलाया।
पड़ गया बलि नृप चरण मँझार ।।4।।
मुनियों का उपसर्ग मिटाया, सबको दया धर्म सिखलाया।
हुआ जिनधर्म का जय जयकार ।।5 ।।
क्षमा भाव धरि बलि को छोड़ा, उसने हिंसा से मुख मोड़ा।
धारा जैनधर्म सुखकार ।।6।।
सर्वजनों में आनन्द छाया, रक्षाबन्धन पर्व मनाया।
हर्षित होय दिया आहार ।।7।।
Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: Bhakti Bhavna