जय जय जिनवर जय जय जिनवर,
है दर्श आपका मंगलकर, स्मरण आपका मंगलकर ।।टेक।।
पूजक से नहीं राग जिनेश्वर, निंदक से नहीं द्वेष है।
वीतराग विज्ञान ज्ञान में, झलके विश्व अशेष है।।
धर्मतीर्थ के परम प्रणेता, दिव्यध्वनि है जग हितकर ।।1।।
षट द्रव्यों का सहज परिणमन, होय परम स्वाधीन है।
ज्यों ज्यों उलझे पर द्रव्यों में, भोगे दुक्ख असीम है।।
भेदज्ञान का मार्ग दिखाया, सब ही को आनन्दकर ।।2।।
परमानन्दमय चित् स्वरूप ही, लोकोत्तम अभिराम है।
ध्येय यही है आराधन से, हो परिणति निष्काम है।।
नाथ आपसे ही यह सीखा, स्वानुभूति ही है सुखकर ।।3।।
होय प्रभु निर्ग्रन्थ मौन हो, ध्याऊँ आतम राम मैं।
निज प्रभुता में तृप्त रहूं मैं, शीघ्र लहूँ शिव धाम मैं।।
यही वंदना यही अर्चना, संवेदन वर्ते सुखकर ।।4।।