जग में जीवन थोरा, रे अज्ञानी जागि । Jag Me Jeevan Thoda Re Agyani Jaagi

जग में जीवन थोरा, रे अज्ञानी जागि

(राग ख्याल)

जग में जीवन थोरा, रे अज्ञानी जागि । । टेक ॥।
जनम ताड़ तरुतैं पड़े, फल संसारी जीव ।
मौत महीमैं आय हैं, और न ठौर सदीव ।। १ । । जगमें. ।।
गिर - सिर दिवला जोइया, चहुंदिशि बाजै पौन ।
बलत अचंभा मानिया, बुझत अचंभा कौन ।। २ । । जगमें . ।।
जो छिन जाय सो आयुमैं, निशि दिन दूकै काल ।
बाँधिसकै तो है भला, पानी पहिली पाल ।। ३ । । जगमें. ।।
मनुष देह दुर्लभ्य है, मति चूकै यह दाव |
भूधर राजुल कंतकी, शरण सिताबी आव ॥४ ॥ । जगमें ।।

रचयिता: कविवर श्री भूधरदास जी

Source: आध्यात्मिक भजन संग्रह (प्रकाशक: PTST, जयपुर )