जब मुनिवर आते हैं, वैराग्य जगाते हैं।
परद्रव्यों से हमको भिन्न बताते हैं,
परभावों से हमको वो भिन्न बताते हैं ॥टेक॥
मुनिराज रहें वन में, नहिं राग करें तन में।
बारह भावना रहे, बस जिनके चिंतन में॥
सिद्धों जैसा बनने, का मार्ग बताते हैं ॥ परद्रव्यों… ॥१॥
नहिं विषयों की आशा, बोलें हित-मित भाषा।
परिग्रह से दूर रहें, नहिं रखते अभिलाषा॥
समता और शान्ति का, वो पाठ पढ़ाते हैं ॥ परद्रव्यों… ॥२॥
अरि मित्र अरु महल मसान, निंदक या स्तुतिवान।
कोई अर्घ्य उतारनवान, कोई असि से करे प्रहार॥
प्रत्येक स्थिति में, समभाव बढ़ाते हैं ॥ परद्रव्यों… ॥३॥
कर भव्यों पर करुणा, करते श्रुत की रचना।
और अशुभ भाव से वो, बस चाहते हैं बचना॥
शुद्धोपयोग का ही, पुरुषार्थ बढ़ाते हैं ॥ परद्रव्यों… ॥४॥