यह छठवे गुणस्थान वर्ति मुनिराज के अतिचार के अनुसार उनके भेद भेद बताये है।
Mockch मार्ग में पहले सम्यग दर्शन कहा गया है
सम्यक दर्शन 2 अंग निकांचित कहा है जिसका अर्थ है कोई आकांछा नहीं मोछ की भी नहीं मतलब नियति पर आश्रित होना तो अर्थ हुआ की मुनि सिर्फ तपस्या इसलिये करते है कि जब mockch होंना हो हो तपस्या का अर्थ है पर के आश्रय का त्याग गृह में ये संभव नहीं और जिसका चरित मोहनीय है उसे चरित होता नहीं चरित पर की आधीनता मिटाता है
Collection of Short video clips where Jain munis differ with Shree Kanji swamy -
https://drive.google.com/folderview?id=1_5mvga-jXybdBfQlOdmmBQ4lx3ZmArdv
पॉइंट ३ - कांजी स्वामी का सबसे ज़्यादा ज़ोर आत्मा की अनुभूति पर था. आत्मा की अनुभूति की मोक्ष की प्रथम सीढ़ी है उसके अलावा कोई रास्ता नहीं है. इस कारण उनका ज़ोर समयसार पर था क्यूंकि समयसार पर सीधे त्रिकाली ध्रुव आत्मा पर लक्ष्य करने की बात कही गयी हैं। और ऐसा नहीं है की केवल कांजी स्वामी का ज़ोर ही समयसार पर था अन्य आचार्यों का नहीं। समयसार पर तो खूब ग्रन्थ लिखे गए है और टीकाएं भी। अमृतचन्द्र आचार्य ने समयसार पर टीका एवं समयसार कलश ग्रन्थ लिखा। आचार्य जयसेन ने समयसार की टीका लिखी है। इसके अतिरिक्त, पंडित जय चंद्र जी छाबड़ा ने काफी गहराई से समयसार टीका पर भावर्थ लिखे हैं। समयसार कलश पर भी टीकाएं लिखी गयी है। उसके बाद पंडित बनारसी दास जी ने नाटक समयसार लिखा है, मोक्ष मार्ग प्रकाशक में भी समयसार का काफी जगह वर्णन किया गया है। तो यह कहना गलत होगा की समयसार पर ज़ोर केवल कांजी स्वामी का था।
कांजी स्वामी को ऐसा नहीं है की भारत चक्रवर्ती की ज़्यादा महिमा आती थी क्यूंकि उन्हें अंतर्मुह्रत में मोक्ष हो गया था। उन्होंने ऐसा कहा भी नहीं था। उन्हें आचार्य कुंद कुंद और आचार्य अमृतचन्द्र की बहुत ज़्यादा महिमा आती थी.