दया, करुणा in the light of Krambaddh paryay

सब कुछ एक निश्चित क्रम से होता है तो फिर जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरला आदि राज्यों में बाढ़ आई है तो क्या हम गृहस्थों को दया, करुणा करनी चाहिए ? बाढ़ तो आनी ही थी अगर ना आती तो इतने सूक्ष्म जीवों का जन्म मरण रुक जाता जो बाढ़ के पानी में जन्म लेते हैं।

अगर हम बाहरी दया करें और मन में सोचे कि जो होना था वही हुआ तो फिर यह तो दिखावा और मायाचारी हुई। यह तो और बड़ा पाप है। हमें फिर कैसे भाव आने चाहिए ?

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Dya aadi shubh bhav hai unse mand kasht parinam bandhate hai or mitti ke chintan se ati mand kasht rup dhram dhyan hota hai

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जी बिल्कुल, जैनधर्म एकांत नही अनेकांत प्रिय है ।

मेरे हिसाब से इसे मायाचारी कहना तब बनेगा जब व्यक्ति अभिप्रायैकांत का शिकार हो ।

जी हाँ, जब अभिप्राय का एकांत हो, तब व्यक्ति अन्य समवायों का बहिष्कार कर देता है । यदि आप इसे मायाचारी ही कहेंगे तो ज्ञानी-सम्यकदृष्टि , जो चतुर्थ गुणस्थानवर्ती हैं, उनके अंतर्द्वंद और बाह्य क्रिया का भी परस्पर विरोध प्राप्त होता है , उस स्थिति में क्या कहेंगे…?

सब कुछ निश्चित है, इसे अभिप्राय तक ही सीमित करके रहेंगे , तो भला होगा, धर्म की पृष्ठभूमि में इसे आचरण / बाह्य क्रिया में लाना नही ।

यदि हमें दूसरे जीवों के प्रति वात्सल्य ना हो, तब तो हम अपराधी हैं ही, सम्यकदर्शन के 8 अंगों में वात्सल्य को भी स्थान प्राप्त है , अतः इसका निषेध तो किसी हाल में नही किया जा सकता ।

दया कोई बाहरी परिणाम नही, ये आत्मा का ही तो परिणमन है | चारित्र गुण की विकारी पर्याय है । परन्तु है मोह का चिह्न ( Pravachan Sar ) ।

अनुकरणीय नही परन्तु पूर्णरूपेण हेय भी नही ।

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