इन भावों का फल क्या होगा ?
इष्टानिष्ट मिथ्या कल्पनायें करते,
शोक संतप्त रहते;
दैहिक दुःख सहते,
विषय सुख की कामनायें करते;
जो हमारे दिन बीते हैं,
निराकुल सुख से रहे रीते हैं;
यह आर्त ध्यान है। दुःख की खान है ।।
दिन-रात रोते-रोते,
मोह नींद में सोते;
दुःख के बीज बोते,
राग-द्वेष की कालिख पोते;
हम जो अहर्निश माथा धुनते हैं,
तिर्यंच गति का ताना-बाना बुनते हैं;
यह आर्तध्यान है। विकृत मनोविज्ञान है ।।
स्व-पर प्राण हनते,
असत् प्रलाप करते;
पराया धन हड़पते,
विषयों में रत रहते;
हम जो आनन्द अनुभव करते हैं,
पाप पंक में फंसते हैं;
यह रौद्र ध्यान है। दुःखद दुर्ध्यान है ।।
विकथायें कहते-सुनते,
राग-रंग में रमते;
मोह मद में पीते,
सुखाभास में जीते;
हंसते-हंसाते हम जो हर्षित होते हैं,
मानव जीवन यों ही खोते हैं;
यह रौद्रध्यान है। नरक निदान है ।।
सचमुच क्या हम पशुओं से गये बीते हैं ?
बुद्धिबल से बिल्कुल रीते हैं ?
नहीं, अनन्त सिद्धों को देखो न !
जिन्होंने काम क्रोध जीते हैं,
कौन कहता है हम अधूरे हैं;
हम तो अनन्त गुणों से भरे-पूरे हैं।
बिन तरासे चैतन्य हीरे हैं।
तरासने की तैयारी कर रहे धीरे-धीरे हैं।।
पहन रखा था हमने अब तक,
एकत्व-ममत्व-कर्तृत्व का चोगा;
इसी कारण अब तक,
चतुर्गति का दुःख भोगा;
इन्हीं भूल भुलैयों में भटककर,
खाते रहे धोखा ही धोखा;
यह भी नहीं समझ पाये कि -
इन भावों का फल क्या होगा ?
- पं० रतनचन्द भारिल्ल, जयपुर