चेतन तें यों ही भ्रम ठान्यो, ज्यों मृग मृगतृष्णा जल जान्यो।
ज्यों निशितम में निरखि जेवरी, भुजंग मान नर भय उर आन्यो ।।टेक।।
ज्यों कुध्यान वश महिष मान निज, फसि नर उर मांही अकुलान्यो ।
त्यों चिर मोह अविद्या पेर्यो, तेरो तै ही रूप भुलान्यो ।।1।। चेतन तें…।।
तोय तेल ज्यों मेल न तन को, उपज खपज में बहु दुख मान्यो।
पुनि परभावन को कर्त्ता है, तै तिनको निज कर्म पिछान्यो ।।2।। चेतन तें…।।
नरभव सुथल सुकुल जिनवाणी, काल लब्धि बल योग मिलान्यो।
‘दौल’ सहज भज उदासीनता, रोष तोष दुख कोष जु भान्यो ।।3।। चेतन तें…।।
Artist- Pt. Daulatram Ji