Hundavsarpani Pancham kaal ko hum kyun sudhare?i

Pancham kaal ki vajah se insaan kharab hote hain ya phir adhiktar kharab insaan Pancham Kaal mein hi paida hote hain isliye ye Pancham kaal ho jaata hai. Agar Pancham Kaal ki vajah se insaan kharab hote hain to hum log duniya ko kyun sudhare ? Jain Dharm ko kyun spread kare jab pancham kaal ka swabhav hi hai ki dharm less hona . Ye to vaise hi hua ki scorpian (बिच्छू) ka जहर निकाले। Ye to Hundavsarpani kaal hai jisme other dharm aa gaye. In general, sirf aur sirf Jain Dharm hi hota hai. Hum kahe ko apna samay lagae in mithya dharm ke virodh mein. Shayad Bhagwan Mahavir ka jeev Marich ki paryay mein sirf निमित्त ही बना होगा हुंडावसर्पिणी काल का अन्य मत फैलाने में। वरना अकेला मारीच इतनी आत्माओं का फ्री में नुकसान कैसे कर देता।

May be that spreading Jain religion removes our previous karmas of निंदा / बुराई of moksh marg which can not be removed in any other way.

Correct me if I am wrong.

इसमे मेरा यह मानना है चूँकि पंचम काल मे भी धर्म का पूरी तरह नाश नही होगा। तो जो अभी जैनधर्म की प्रचार की क्रिया हो रही है वह इसमे निमित्त रूप हो सकती है कि इस वजह से ही पंचम काल के अंत तक धर्म रहेगा। क्योंकि आचार्यो को भी पता था कि धर्म का प्रभाव कम होता जायगा पर फिर भी उन्होंने ग्रंथ लिखे ताकि हम जैसे लोग अपना उद्धार कर सके। इसलिए शायद हमे काल पर दोष नहीं लगाना चाहिए और जैन धर्म का प्रचार करना चाहिए।

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जीव (इंसान सहित) अपने कर्मो की वजह से ख़राब होता है। द्रव्य काल और क्षेत्र तो बस निमित होते है। पंचम काल सभी जन्म से मिथ्यादृष्टि होते है। बाद में सम्यक्त्व प्राप्त कर सकते है।

पंचम काल में भी तो सम्यक दर्शन प्राप्त किआ जा सकता है।

पंचम काल के अंत तक धर्म समाप्त हो जायेगा। उसके बाद आदमी भी जानवर की तरह हो जायेगा। लेकिन पंचम काल के अंत तक तो रहेगा। अभी 18000+ साल है। हमसे जितना हो सके ज्यादा से ज्यादा प्रभावना करे। खुद भी तरे , औरो को भी तारे।

मुझे इसके बारे में नहीं पता। पर मुझे ऐसा लगता है, ऐसा नहीं होगा। सामान्य काल चक्र में भी मिथ्या धरम होते होंगे। नहीं तो मिथ्यात्व का कारन क्या रहेगा ?

ऐसा नहीं है करम और तरह से भी नष्ट किए जा सकते है। तप आदि से। किन्तु अगर धर्म प्रभावना नहीं करेंगे तो हम सम्यकदृष्टि नहीं हो सकते। सम्यक दर्शन के 8 अंग होते है। 8th प्रभावना ही है।

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Bilkul theek jawaab maalum padta hai. Aakhri point mai hum yeh bhi samajh sakte hai ki sirf bolna ya prachaar karne se hii prabhaavna nahi hoti.

Agar jain dharm ke anuyayi apne charitra sudhaar le toh usse bhi bahot prabhavna hoti hai kyunki baaki log unko observe karte hai. Acche charitra ka paalan karne se bhi mahaan prabhaavna hoti hai.

Jaise ki acharya shantisagarji maharaj ke darshan karne anya mat ke bhi bhakt aate thay aur unse kuch na kuch chhota sa niyam lekar jaate thay.

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जो प्रभावना बोल कर नहीं हो सकती हो व्रती, साधु के सद आचरण से स्वतः होती है। वहां प्रयोजन नहीं होता कि मेरा प्रभाव यहां पड़े लेकिन उनके आचरण से वो स्वतः ही प्रदर्शित होता है।

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