हम हैं जिनवर के अनुयायी। Hum hain jinvar ke anuyayi

हम हैं जिनवर के अनुयायी, जिनवर पंथ चलेंगे।
सच्चे देव-शास्त्र-गुरु का सम्यक् श्रद्धान करेंगे।। टेक ॥।

जिन तत्त्वों का ज्ञान करेंगे, स्व-पर भेद विज्ञान करेंगे।
मोह अंधेरा दूर करेंगे, आतम अनुभव प्रगट करेंगे ।। 1 ।।

लोक निंद्य दुष्कार्य तजेंगे, धर्म निंद्य दुर्भाव तजेंगे।
सहज स्वरूपाचरण धरेंगे, साँचा संयम प्रगट करेंगे ।। 2 ।।

जीव विराधन नहीं करेंगे, आराधन में चित्त धरेंगे।
निष्कलंक निर्द्वन्द्व रहेंगे, निज निर्ग्रंथ स्वरूप धरेंगे ।। 3 ।।

उत्तम क्षमादिक धर्म धरेंगे, उपसर्गों से नहीं डरेंगे।
रत्नत्रय को पूर्ण करेंगे, जिनवर सम पद प्रगट करेंगे ।। 4 ।।

उक्त रचना में प्रयुक्त हुए कुछ शब्दों के अर्थ

१. अनुयायी= मानने वाले २. दुष्कार्य= बुरे काम
३. निर्द्वन्द्व= बाधा रहित

पुस्तक का नाम:" प्रेरणा " ( पुस्तक में कुल पाठों की‌ संख्या =२४)
पाठ क्रमांक: ०९
रचयिता: बाल ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन् ’