हित मित प्रिय वाणी बोलो रे सम्हाल। Hit Mit Priy vaani Bolo Re Samhal। प्रिय वाणी। Priy Vaani

प्रिय-वाणी

हित-मित प्रिय वाणी बोलो रे सम्हाल।
पाप से बचोगे अरु रहोगे खुशाल ।। टेक ॥।
सत् को समझ लो, असत् को छोड़ो,
प्रभु भक्ति में निज उपयोग को जोड़ो।।
परिणाम सुधरेंगे होंगे मालामाल ।। हित.।। 1 ।।
स्वाध्याय में निज मन को लगाओ,
तत्त्वों के निश्चय से भेदज्ञान पाओ
स्वानुभव कर शिव मारग में चाल।। हित. ।। 2।।
भाओ भवि क्षण-क्षण वैराग्य भावना,
विषयों की अंतर में रखना न कामना।
संसार क्लेशमय छोड़ो रे धमाल’ ।। हित. ।। 3।।
कर पुरुषार्थ निज ध्यान को बढ़ाओ,
अंतर में ही सुख अंतर में पाओ।
अंतर में रम जाओ होओगे निहाल ।। हित. ॥4॥

उक्त रचना में प्रयुक्त हुए कुछ शब्दों के अर्थ
२. धमाल हंगामा / उपद्रव

पुस्तक का नाम:" प्रेरणा " ( पुस्तक में कुल पाठों की‌ संख्या =२४)
पाठ क्रमांक: १८
रचयिता: बाल ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन् ’