हे भविजन ध्या लो आतमराम | he bhavijn dhya lo aatamram

हे भविजन ध्या लो आतमराम।
कौन जानता कब हो जाए, इस जीवन की शाम।।टेक।।

जग में अपना कुछ भी नहीं है, पर जन तन या दाम।
आयु अन्त पर सब छूटेगा, जल जाएगी चाम।।१।।

यह संसार दुखों की अटवी, यहाँ नहीं आराम।
शुद्धात्म की करो साधना, रहो सदा निष्काम।।२।।

मोह राग को छोड़ रे चेतन, निज में करो विश्राम।
शुद्ध-बुद्ध अविनाशी हो तुम, शुद्धातम सुखधाम।।३।।

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