है परम दिगंबर मुद्रा/Hai Param Digambar Mudra

है परम - दिगम्बर मुद्रा जिनकी, वन-वन करें बसेरा ।
मैं उन चरणों का चेरा, हो वन्दन उनको मेरा ।।
शाश्वत सुखमय चैतन्य - सदन में रहता जिनका डेरा ।
मैं उन चरणों का चेरा, हो वन्दन उनको मेरा ॥ टेक ॥

जहँ क्षमा मार्दव आर्जव सत् शुचिता की सौरभ महके ।
संयम तप त्याग अकिंचन स्वर परिणति में प्रतिपल चहके।
है ब्रह्मचर्य की गरिमा से, आराध्य बने जो मेरा ।। १ ।।

अन्तर - बाहर द्वादश तप से, जो कर्म-कालिमा दहते ।
उपसर्ग परीषह-कृत बाधा, जो साम्य - भाव से सहते ।
जो शुद्ध-अतीन्द्रिय आनन्द - रस का, लेते स्वाद घनेरा || २ ||

जो दर्शन ज्ञान चरित्र वीर्य तप, आचारों के धारी ।
जो मन-वच-तन का आलम्बन तज, निज चैतन्य विहारी ।।
शाश्वत सुखदर्शन - ज्ञान - चरित में, करते सदा बसेरा || ३ ||

नित समता स्तुति वन्दन अरु, स्वाध्याय सदा जो करते ।
प्रतिक्रमण और प्रति-आख्यान कर, सब पापों को हरते ।।
चैतन्यराज की अनुपम निधियाँ, जिसमें करें बसेरा ।। ४ ।।

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