ज्ञानी के सहारे हो | Gyani ke sahare ho

ज्ञानी के सहारे हो, अनुभूति में आए हो।
मेरे ज्ञायक प्रभुवर तुम, बस एक सहारे हो।

ज्ञानी ज्ञायक में ही, ज्ञायक होकर रहते।
ज्ञेयों से प्रभावित नहीं, नित ज्ञान रूप रहते।।
ज्ञायक ज्ञायक ज्ञायक, नित ज्ञायक ही रहते।
मेरे ज्ञायक प्रभुवर तुम…।।

ज्ञेयों से ज्ञान नहीं, ज्ञेयों में ज्ञान नहीं।
है ज्ञेय ज्ञेय में ही, ज्ञायक में ज्ञेय नहीं।।
है भिन्न-भिन्न सत्ता, नहीं कोई किसी का है।
मेरे ज्ञायक प्रभुवर तुम…।।

जो ज्ञान जानता है, वह ज्ञान की ही रचना।
वह ज्ञान से निर्मित है, बस ज्ञान ज्ञान जितना।।
यह ज्ञान का शीश महल, जहां ज्ञानी रहते हैं।
मेरे ज्ञायक प्रभुवर तुम…।।

मुझ ज्ञान सिंधु में है, बस ज्ञान ही ज्ञान भरा।
मेरी ज्ञान तरंगों में, ज्ञायक साम्राज्य मेरा।।
आनंद आनंद आनंद, आनंद ही जीवन है।
मेरे ज्ञायक प्रभुवर तुम…।।

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