ज्ञान गगन के तले | Gyaan Gagan Ke Tale

ओऽऽ ज्ञान गगन के तले ऽऽ, मुनियों का संघ चले ऽऽ,
ओऽऽ जैन धर्म के तले ऽऽ, मुनियों का संघ चले ऽऽ।
ऐसे ही जग में, आते हैं मुनिवर, ऐसे ही धर्म पले ऽऽ ॥ ओ ऽऽ ज्ञान गगन के तले …

समकित की बंसी, मिथ्यात्व ध्वंसी, मोह की रात गले ऽऽ ॥1॥ ओ ऽऽ ज्ञान गगन के तले…

संयम की बेलें, अंतर में फैलें, अविरत की रात खले ऽऽ॥2॥ ओ ऽऽ ज्ञान गगन के तले …

प्रमाद भागे, पुरुषार्थ जागे, अनुभव का भाव पले ऽऽ ॥3॥ ओ ऽऽ ज्ञान गगन के तले…

शुद्धोपयोग की, धुन में ही रमकर, रत्नत्रय पुष्प खिले ऽऽ ॥4॥ ओ ऽऽ ज्ञान गगन के तले…

तीन रतन की, पूर्णता हो तब, केवलज्ञान मिले ऽऽ ॥5॥ ओ ऽऽ ज्ञान गगन के तले …