ग्यान बिना दुख पाया रे, भाई | Gyaan bina dukh paaya re, Bhai

ग्यान बिना दुख पाया रे, भाई |
भौ दस आठउ श्वास सास मैं, साधारन लपटाया रे || टेक ||

काल अनन्त यहां तोहि बीते, जब भई मंद कषाया रे |
तब तू निकसि निगोद सिंधु तैं, थावर होय न सारा रे || १ ||

क्रम क्रम निकसि भयौ विकलत्रय, सो दुख जात न गाया रे |
भूख प्यास परवस सही पशुगति, बार अनेक बिकाया रे || २ ||

नरक माहिं छेदन भेदन बहु, पुतरी अगनि जलाया रे |
सीत तपत दुरगंध रोग दुख, जानै श्री जिनराया रे || ३ ||

भ्रमत भ्रमत संसार महावन, कबहुँ देव कहाया रे |
लखि पर विभव सह्यौ दुख भारी, मरन समै बिललाया रे || ४ ||

पाप नरक पशु पुन्य सुरग वसि, काल अनन्त गमाया रे |
पाप पुन्य जब भए बराबर, तब कहुँ नर भौ जाया रे || ५ ||

नीच भयौ फिरि गरभ पडयौ, फिरि जनमत काल सताया रे |
तरुन पनौ तू धरम न चेतौ, तन धन सुत लौ लाया रे || ६ ||

दरव लिंग धरि धरि मरि मरि तू, फिर फिर जग भज आया रे |
‘द्यानत’ सरधा जु गहि मुनिव्रत, अमर होय तजि काया रे || ७ ||

Artist- पं. द्यानतराय जी