बाल भावना। ९. गुरु निर्ग्रन्थ परिग्रह त्यागी । Guru Nirgranth Parigrah Tyagi

९. गुरु

गुरु निर्ग्रन्थ परिग्रह त्यागी, भव-तन-भोगों से वैरागी।।
आशा पाशी जिनने छेदी, आनंदमय समता रस वेदी।।टेक।।

ज्ञान-ध्यान-तप लीन रहावें, ऐसे गुरुवर मोकों भावें।
हरष-हरष उनके गुण गाऊँ, साक्षात् दर्शन मैं पाऊँ।।1।।

उनके चरणों शीश नवाकर, ज्ञानमयी वैराग्य बढ़ाकर।
उनके ढिंग ही दीक्षा धारुं, अपना पंचम भाव संभारुँँ।।2।।

सकल प्रपंच रहित हो निर्भय, साधूँ आतम प्रभुता अक्षय।
ध्यान अग्नि में कर्म जलाऊँ, दुखमय आवागमन नशाऊँ।।3।।

रचयिता-: बा.ब्र.श्री रवींद्र जी ‘आत्मन्’


Singer: @Deshna

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