As science say earth is oval shaped so it is Grahit mithyatva to believe that earth is oval shaped. Because I think as Grahit mithyatva is only applicable in misconception of prayojanbut tatva.
“जे कुगुरु कुदेव कुधर्म सेव , पोषे चिरदर्शन मोह एव ।”
छःढाला की दूसरी ढाल में दौलतराम जी कहते है कि जो कुगुरु कुदेव और कुधर्म को पूजते हैं वे गृहीत
मित्यात्व का पोषण करते है।
ये मुख्यता मनुष्यो की अपेक्षा होता है but तिर्यंचों में भी होता है
प्रयोजनभूत तत्व संबंधी भूल तो अग्रहित मित्यात्व है!
earth ka shape kuch bhi हो usse सम्यग्दर्शन पर koi farak nh padta he क्यूक़ि तिर्यंचों को ये कहा पता है परंतु फिर भी उनको सम्यग्दर्शन होता है but अगर कुगुरु कुदेव का सेवन करेंगे तो सम्यग्दर्शन नहीं हो सकता है ।
science usko oval मानता है तो ये उसका उस पदार्थ संबंधी अज्ञान है। गृहीत मित्यात्व मात्र कुदेव को पूजने से ही होता है।
गृहीत मित्यात्व अग्रहित मित्यात्व का पोषण करता है।
“सर्वप्रथम गृहीत जाता है than अग्रहित जाता है”
Toh phir Jo Science padhate hai Toh kya unhe paap lagega
सही वस्तु स्थिति के विरुद्ध निरूपण करने का पाप तो लगेगा ही but उतना पाप नहीं लगेगा जितना प्रयोजनभूत जीवादि तत्वों का गलत निर्णय और उनके गलत श्रद्धान से लगेगा।
जीव के दर्शनमोहनीय के उदय से मित्यात्व भाव होता है। उससे स्व तत्त्व को तो जानता नही है और अजीव तत्त्व का निर्णय भी सही नहीं है।
अगर आप science पड़ते हैं और पढ़ाते हैं तो इसमें कोई घबराने की बात नहीं है क्यूकी अगर आपको अंदर से सही श्रद्धान है की वास्तव में वस्तु स्थिति ऐसी नहीं है तो उसका उतना पाप नही लगेगा क्यूकी सही वस्तु स्थिति का ज्ञान और श्रद्धान है।
और जैन दर्शन की सुन्दर व्यवस्था निश्चय व्यव्हार का समन्वय ।
अभी हम गृहस्थ है हमें इस भूमिका में पढ़ना पढ़ाना पड़ सकता है और इसलिये वो करना भी चाहिए।
मैं इससे ये नही कहना चाहता की compulsary करना ही चाहिए यही उचित है but भूमिका अनुसार अपने विवेक का उपयोग करना चाहिए।
But Hamare padhane se yadi koi yeh maane ki Earth is oval Toh kya hamme paap lagega but hame jindharm par sacha sradan hai
पढ़ाना अगर मज़बूरी है तो इतना पाप नहीं लगेगा क्यूकी
वो प्रयोजनभूत तत्व नहीं है क्यूकी आजीविका करना गृहस्थ के कर्तव्य के रूप में है और अगर अंतरंग से श्रद्धान है तो।
अगर कोई teacher apni job छोड़ देगा तो क्या कमायेगा ।
अगर जान बूझ कर कर रहा है , जैन दर्शन को गलत साबित करने का जिसका प्रयोजन है उस उद्देश्य से पढ़ा रहा है तो नरक निगोद का कारण है ।
और एक बात ये भी है कोई द्रव्य किसी अन्य द्रव्य का कर्ता नही है तो किसी के पढ़ाने से कोई गलत ग्रहण कैसे कर सकता है वह सब अपनी योग्यता से ही ग्रहण करते है teacher तो student के ज्ञान में निमित्त मात्र है।
तो हमारे पढ़ाने से कोई पढता है, मेरे द्वारा किसी को ज्ञान होता है ,मैंने पढ़ाया इस कर्तत्व के विकल्प से जितना पाप लगता है उसके सामने earth is oval ka पाप कुछ भी नहीं है ।
मैं ये नही कह रहा की किसी को गलत बात बताओ qki first thing ki वो science पे विश्वास करते है तो जैन धर्म की बात को नहीं मानेंगे ।
और उनके नहीं मानने से जो राग द्वेष खड़े होंगे वो हानिकारक है
तथा जहाँ लगता है कि कोई साधर्मी जानने का इछुक है तो उसे पूर्ण सही वस्तु स्थिति बताए
इसलिए भूमिकानुसार अपने विवेक का उपयोग करें।
means
" पढ़ाते हुए भी मैं किसी को पढ़ा सकता नहीं ऐसी ही ज्ञानियों की प्रवत्ति होती है"
ऐसी ही भावना हमारी हो ऐसा प्रयत्न करना चाहिए।
Agar hum yeh Kehke padhaye ki Science aisa kehti hai Toh hum paap me baagidaar nahi Honge kya
हां ,ये भी सही ही है qki science ही तो बोल रही है ये सब । और science के name से ही पढना पढ़ाना चाहिए ।
but पुण्य पाप की theory इस fully dependent on our परिणाम ।
Earth ki shape ko consider nahi Karen Toh Science is proving jainism in every field. So in those topics should we promote science
science ne naya kya kuch bataya he.
jo science batata he wo jainism to phele ki btata chuka he.
mujhe science se koi dwesh nhi h but this is reality.
- water me jiv.
- plant is jiv etc etc
jain dharm ye phle hi bata chuka nhi.
Kya aapne evolution ke baare me padha he
padha tha 10th me thoda bhut yad he.
aache se nhi but hint se yad aa jyega…
but why???
As human evolution state that chimpanzees and human are having same ancestors. It is a very large debating topic can I talk you via phone. So please can you send me your no if you are not busy
ya sure why not
7792803124
Nice discussion @Atishayshastri and @Rajat_J777. Let me try to summarize the thread. Correct me if I’m wrong.
If the person is wrong with प्रयोजनभूत concepts:
- देव शास्त्र गुरु then गृहीत मिथ्याद्रष्टि
- सात तत्त्व then अगृहीत मिथ्याद्रष्टि
If the person is wrong with अप्रयोजनभूत concepts:
- Under any influence (geography teacher) or mistakenly forget the details (eg specific width and height of any करणानुयोग figure) then may or may not be मिथ्याद्रष्टि
- No influence but still preach the wrong teachings of अप्रयोजनभूत तत्त्व then absolutely मिथ्याद्रष्टि
Reference: गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा २७
Screenshot from the MMP first chapter.
You can also refer the MMP, सम्यक्त्व सन्मुख मिथ्यादृष्टि topic in 7th chapter for more indept details on प्रयोजनभूत (हेय-उपादेय) तथा अप्रयोजन (ज्ञेय) तत्त्व।