घड़ी जिनराज दर्शन की, हो आनंदमय हो मंगलमय।
घड़ी यह सत्समागम की, हो आनंदमय हो मंगलमय ।।टेक।।
अहो प्रभु भक्ति जिनपूजा, और स्वाध्याय तत्त्व-निर्णय,
भेद-विज्ञान स्वानुभूति, हो आनंदमय हो मंगलमय ।।१।।
असंयम भाव का त्यागन, सहज संयम का हो पालन,
अनूपम शान्त जिन-मुद्रा, हो आनंदमय हो मंगलमय ॥२॥
क्षमादिक धर्म स्वाश्रय से, सहज वर्तें सदा वर्तें,
परम निर्ग्रन्थ मुनि जीवन, हो आनंदमय हो मंगलमय ।।३।।
हो अविचल ध्यान आतम का, कर्म बंधन सहज छूटें,
अचल ध्रुव सिद्ध पद प्रगटे, हो आनंदमय हो मंगलमय ।।४।।
Artist - ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’
Singer: At. @Pranjal