मुस्कान
फूलों के सम मुस्काना’ तुम,
कभी नहीं मुरझाना तुम ।। टेक ॥।
कमजोर नहीं बलवान बनो,
कभी नहीं घबराना तुम |
आँखों में आँसू नहीं लाना,
ना रोना और रुलाना तुम ।। 1 ।।
विघ्नों से डरकर नहीं रुकना,
बचकर आगे बढ़ जाना तुम |
औरों की हँसी उड़ाना मत,
नहिं गिरना और गिराना तुम ॥ 2 ॥
ईर्ष्या या चुगली ना करना,
नहिं भिड़ना और भिड़ाना तुम |
नहीं विवाद में समय गँवाना,
समझो और समझाना तुम ।। 3 ।।
दुखदाई निन्दा ना करना,
नहिं डरना और डराना तुम |
ना लज्जा अच्छे कार्यों में,
ना दबना और दबाना तुम ।। 4 ।।
निज लक्ष्य से दृष्टि हटाना ना,
धीरज रखकर बढ़ जाना तुम |
रहना प्रसन्न करना प्रसन्न,
फूलों के सम मुस्काना तुम ।। 5 ।।
उक्त रचना में प्रयुक्त हुए कुछ शब्दों के अर्थ
१. मुस्काना = प्रसन्न होना
पुस्तक का नाम:" प्रेरणा " ( पुस्तक में कुल पाठों की संख्या =२४)
पाठ क्रमांक: १७
रचयिता: बाल ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन् ’