एक थी पिंकी न्यारी, सबको लगती न्यारी।
दादा को पानी देती, दादी की सेवा करती।।
सदा समय पर पढ़ती, काम में हाथ बटाती।
उसे देख सब होते खुश, पैसा पाकर वह भी खुश ||
पिंकी गई पाठशाला, ली बालबोध पाठमाला।
पिंकी गई फिर मंदिर, स्तुति पढ़ी इक सुंदर ||
हाथ में अरघ धरके, प्रभु का दर्शन करके।
जिन दर्शन यों कीना, सम्यग्दर्शन लीना ||
-बा. ब्र. पं. श्री सुमतप्रकाशजी