एक भक्त पुजारी | ek bhakta pujari

एक भक्त पुजारी

शास्त्र सुने मालाएँ फेरी, प्रतिदिन बना पुजारी,
किन्तु रहा जैसे का तैसा, हुआ न मन अधिकारी ।
साठ साल की उम्र हो चली, फिर भी ज्ञान न जागा,
सच तो होगा ये कह देना, जीवन रहा अभागा ॥ १ ॥
भाव शून्य केवल शरीर, पूजा का पुन्य कमाता ||२||
कहता फिर पूजा है निष्फल, संकट नहीं मिटाती,
वही मशक्कत वही ग़रीबी, सुख न सामने लाती ।
बढ़ान पैसा भी इतना, जो सब पर रौब जमाता,
विद्युत वायु फैन से लेता, या मोटर दौड़ाता ॥ ३ ॥
नहालिया हो गया शुद्ध, खड़ा हुआ प्रभुपद मै,
त्याग सका न वासना मन की, डूबा गहरे मद मै ।
इधर धूप क्षेपण करता मन, उधर सुलगता जाता,
नहीं सोचता यह पूजा क्या ? जिस मैं चित चंचल है,
बहू बेटियों पर कुदृष्टि, या अरु कोई हल चल है
जिसको कहते हैं पूजा, जिसके हम भक्त पुजारी,
उसकी पुण्य कथा सुनलो, शिक्षाप्रद कल्मष हारी ॥४॥
भक्त लीन था प्रभु पूजा मैं, निज विकारता खोकर,
घर से एक खबर आती है, दुखकर और भयंकर ।
नौ जवान इकलौता बेटा भी सांप ने काटा,
चल जल्दी घर, तोड़ दिया है हों ने सन्नाटा ॥ ५ ॥
सुनता है सुनकर कहता है, मैं ही क्या कर लूंगा,
पूजा छोड़ भगूं, आखिर जीवन तो डाल न दूंगा
सुन कर स्त्री मंदिर मैं, रोती रोती आती है,
कहती है कठोर हो, क्या पूजा अब भी भाती है ? ॥ ६ ॥
भरे ! छोड़ चल दो पूजा को, फिर भी समय मिलेगा,
चला गया बच्चा तो दुख, दिल से न कभी निकलेगा ।
ऐसी भी पूजा क्या, जो बच्चो का रहम भुलाती,
अन्दी चलो, खोफ़ से मेरी धड़क रही है छाती ॥ ७॥
हाय ! अचेत पड़ा है बे सुध, तन में भरा ज़हर है,
मुंह से झाग दे रहा है, पल पल प्राणों का डर है ।
सब तुमको धिक्कार रहे, कहते ये कैसा नर है ?
निरमोही के सीने में दिल है, अथवा पत्थर है ? ॥ ८॥
बोला जाकर जो उपाय समझो, वह करो कराओ,
मेरी पूजा में न प्रियतमे, बाधा तुम पहुंचाओ ।
पूजा को तुम व्यर्थ समझ कर ही, ऐसा कहती हो,
लेकिन यह सच्चा उपाय है, पर तुम भूल रही हो ॥९॥
प्रभु से अधिक कौन है विषहर, कौन अधिक उपकारी,
जिसकी चरण शरण में जाऊं, बनकर दीन भिखारी |
इन चरणों की सेवा से जो, फल दुनियां पाती है,
वैसी वस्तु मिसाल देखने में न कहीं आती है ||१०||
प्रभु पूजा मेरा उपाय है, जो संकट मोचक है,
अब तो दुख के सबब और भी यह सब आवश्यक है ।
नारी चली क्रोध मै डूबी, रोती और बिलखती,
विवश हतास सर्द सांसों पर, जीवन कायम रखती ॥११॥
भक्त लगा पूजा में, प्रभु छबि में अपने को खोने,
सोचा नहीं हुआ क्या आगे, क्या जाता है होने ।
इतने में बच्चे को लेकर, गृहणी फिर आ धमकी,
भीड़ साथ में थी, रोते सब लेकर सूरत ग़म की ||१२||
वेदी के समीप बच्चे को, नाखुश होकर डाला,
कहने लगी बचालो इस को, पूजा कर के लाला ।
पूजा महा मंत्र है इस का, वह ही ज़हर हरेगी,
जो न बचा पाई तो सच मुच, बनी बात बिगड़ेगी ॥ १३ ॥
नहीं भक्त ने उत्तर में, भूले भी शब्द निकाला,
प्रभु की नज़रों में अपनी आंखों को बेशक डाला।
उसी लगन से पूजा में, वह हुआ दृढ़व्रती तन्मय,
फिर जय हो जाने में क्या हो भी सकता था संशय ||१४||
मुर्झाए मन मुदित हुये, मुख खिंची हर्ष की रेखा,
जब निर्विष होते बालक को सब ने सन्मुख देखा ।
उठा कुमार नींद से सोकर ही जैसे जागा हो,
जीवन की दुंदुभी श्रवण कर, महा काल भागा हो ||१५||
धन्य धन्य जय के नारों से, सब ने गगन गुंजाया,
लोगों ने अचरज माता ने अपना बच्चा पाया ।
कहने लगे धन्य पूजा, और धन्य अनन्य पुजारी,
श्रद्धा और भक्तिमय पूजा है, अतीव सुखकारी ॥ १६॥

दोहा

“भगवत्” पूजा की महानता, कहले किस का बस है,
किस में इतनी ताक़त है, किस में इतना साहस है ?

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