आज कल ये बहुत normal है कि रोज़ है धार्मिक message आते है, whatsapp/youtube etc. हम हमेशा योग्य स्थिति में नही होते है, जैसे कभी बिस्तर पर , कभी सफर में , कभी जूठे , कभी बिना नहाये तो हमे digital जिनवाणी का प्रयोग किस प्रकार सीमित रखना चाहिए। जैसे - उद्धरण (प्रमाण) के लिए हम मूल ग्रंथों की image share करते हैं ?
इस प्रश्न को लेकर बहोत असमंजस है।
यथायोग्य विनय रखना चाहिए।
एक बात यह भी है कि जिस प्रकार ग्रंथ में स्थापना निक्षेप के कारण योग्य व्यवहार संभव है, उस प्रकार यहां संभव नहीं है। ग्रंथ में तो शास्त्र जी की स्थापना की जाती है परंतु हम मोबाइल/अन्य डिजिटल माध्यम को ग्रंथ के रूप में स्थापित नहीं कर सकते हैं। इतना अवश्य है कि मोबाइल में जब जिनवाणी संबंधी कुछ भी हो, तब थोड़ा विवेक पूर्वक प्रवृत्ति हो। चूंकि डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग सभी का अलग अलग है, उस विवेक का individually develop होने का ही अवसर है।
Perfectly answered.
Also, तत्त्व की गंभीरता तथा परिणामों में निर्मलता का होना is nearly impossible on those tech giant platforms (WhatsApp, Facebook, Telegram, Instagram etc) as its basically built for mundane talks. That’s why we should use and promote purely dedicated platforms (like this forum) for religious communications.