श्वेताम्बर आम्नाय
केवली भगवान को निहार मल मूत्र होता है।
केवली को रोग होता है।
केवली कवलाहार भोजन करते हैं।
केवली केवली को नमस्कार करते हैं।
केवली के उपसर्ग होता है।
प्रतिमा को आभूषण पहनाते हैं।
तीर्थंकर पाठशाला में पढ़ते हैं।
तीर्थंकर की पहली देशना दिव्य ध्वनि खाली जाती है।
महावीर भगवान देव नंदा ब्राह्मणी के गर्भ में आए, इंद्र ने उनको देव नंदा के गर्भ से निकालकर माता त्रिशला देवी के गर्भ में पहुंचा दिया, वहां जन्म हुआ।
श्री आदिनाथ भगवान तथा उनकी स्त्री सुनंदा युगलिया थे।
श्री आदिनाथ भगवान और उनकी बहन सुनंदा ने आपस में ब्याह किया।
केवली को छींक आती है।
गौतम स्वामी खंदक ब्राह्मण मिथ्या सिद्धांत वादी से मिलने गए।
स्त्री के पंच महाव्रत होते हैं।
स्त्री को मोक्ष होता है।
स्त्री भी तीर्थंकर होती है, दीक्षा के समय इंद्र श्वेत साड़ी पहनने के लिए भेंट करता है। प्रतिमाएं आभूषण सहित होती हैं।
19 वे तीर्थंकर मल्लीबाई स्त्री थे।
जुगलिया की ऊंची काया को दबाकर छोटा किया गया और भरत क्षेत्र में लाया गया।
जुगलिया को भोग भूमि से भरत क्षेत्र में लाकर हरिवंश की स्थापना की गई।
जति के 14 उपकरण होते हैं।
मुनिसुव्रत नाथ भगवान के घोड़ा गणधर था।
मुनियों के लिए शिष्य आहार लाते हैं।
यति श्रावक के घर से आहार लाकर आश्रम में ही आहार करते हैं।
धर्म की निंदा करने वालों को मारने में पाप नहीं होता।
जुगलिया मरकर नरक में भी जा सकते हैं।
भरत जी ने अपनी ब्राह्मी बहन को अपने विवाह के लिए रखा।
दान तप शील सामायिक परिणामों से ही मोक्ष हो जाता है।
भरत महाराज को घर में ही केवल ज्ञान हो गया।
भगवान महावीर ने जन्म कल्याणक के समय मेरु पर्वत को हिला दिया था।
द्रोपदी पंच भर्तारी थी।
गुरु चेले के कंधे पर चढ़े हुए थे उसी समय चेले को केवल ज्ञान हो गया।
जय माली जाति का माली भगवान महावीर का जमाई था।
धातकी खंड में कपिल नाम के नारायण को केवल ज्ञान हो गया।
वसुदेव के 72000 स्त्री थी।
मुनि शूद्र के घर भी आहार लेते थे।
देव मनुष्यनी से भोग करते हैं।
सुलसा श्रावकनी के बेटा पैदा हुआ।
चक्रवर्ती के 60000 रानियां होती हैं।
त्रिपिष्ठ नारायण छिपा से उपजे।
बाहुबली का शरीर 525 धनुष नहीं था।
अनार्य देशों में भी भगवान महावीर का विहार हुआ।
चौथे काल में असंयमी की भी पूजा होती है।
देवों का एक कोस मध्य लोक के 4 कोस के बराबर होता है।
प्राण जाते हों तो प्रतिज्ञा भंग कर सकते हैं।
समवशरण में तीर्थंकर नग्न दिखाई नहीं देते।
उपवास के दिन औषध ले सकते हैं।
यति के हाथ में डंडा होता है।
मीरा देवी को हाथी पर चढ़ी हुई अवस्था में केवल ज्ञान हो गया है।
भाग लिंग और द्रव्य लिंग के बिना भी केवल ज्ञान हो सकता है।
चांडाल आदि भी मोक्ष जा सकते हैं।
सूर्य चंद्रमा विमान सहित भगवान महावीर के समवशरण में आए।
दूसरे स्वर्ग का इंद्र पहले स्वर्ग में आता है।
पहले स्वर्ग का जीव दूसरे स्वर्ग में चला जाता है।
बच्चे को जन्म देते समय जो मल बहता है, उसके सिवाय शरीर के नौ द्वारों के मल सुमल हैं।
युगलिया के मरने पर मृतक शरीर का दाह संस्कार किया जाता है।
केवली भगवान के शरीर का भी दाह संस्कार किया जाता है।
यति के काम विकारी मन को श्रावक अपनी स्त्री द्वारा भी स्थिर कर सकता है।
तीर्थंकरों के भी अट्ठारह दोष होते हैं।
तीर्थंकरों के शरीर से भी पांच स्थावर जीवों को बाधा होती है।
स्वर्ग 12 होते हैं।
व्यास जी ने 55000 वर्ष तक गंगा देवी से भोग किया।
भोग भूमियाँ 96000 होती हैं।
तीर्थंकरों की माता को 14 स्वप्न आते हैं।
चमड़े (मशक) में रखा पानी निर्दोष है।
बासी पुरानी घी और पकवान निर्दोष हैं।
भगवान महावीर ने अपने माता पिता स्वर्ग जाने के बाद दीक्षा ली।
बाहुबली ने मुराल रूप धारण किया।
अच्छा फल खाने में कोई दोष नहीं।
युगलिया के मल मूत्र होता है।
63 शलाका पुरुषों के मल मूत्र होता है।
इंद्र 64 होते हैं।
पराठों एपौ आहार निर्दोष है।
यादव वंशियों ने मांस खाया।
मनुष्य, मानुषोत्तर पर्वत से बाहर जाता है।
कामदेव 24 नहीं होते।
विदेह क्षेत्र 160 होते हैं।
देव भगवान के मृतक शरीर में दाढ़ दांत निकाल कर स्वर्ग में ले जाते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
भगवान मोक्ष जाते समय समवशरण में वस्त्र सहित होते हैं।
हाड़ की स्थापना करके पूजा कर सकते हैं।
नाभि राजा और मरु देवी जी जुगलिया थे।
नव ग्रैवेयक वाले अहम इंद्र, 9 अनुदिश, पंचोत्तरों में चले जाते हैं।
समुद्र के पास खारा उप समुद्र है।
नोट - श्वेताम्बर आम्नाय में ये 84 बातें अछेरा कहलाती हैं।