धन्य हुआ कृतकृत्य हुआ जब | Dhanya hua kratkratya hua

(तर्ज : आओ भाई तुम्हें सुनायें… )

धन्य हुआ कृतकृत्य हुआ जब पाया निज शुद्धात्मा।
वाँछा कोई शेष रही नहीं, पाया निज शुद्धात्मा॥
जय-जय शुद्धात्मा, मैं हूँ शुद्धात्मा ॥ टेक॥

भव-भव का अज्ञान नशाया, सारा दुःख पलाया है।
नहीं प्रयोजन रहा जगत से, सुख निज में ही पाया है॥
द्रव्यदृष्टि से देखा मैं हूँ मंगलमय शुद्धात्मा॥1॥

चिंता नहीं विभावों की, कुछ वे तो असतू पने भासे।
कर्म-विमुक्त सहज परमातम, अहो ! ज्ञान में प्रतिभासे ॥
सहज ही भाऊँ सहज ही ध्याऊँ, परमानंदमय आत्मा॥ 2॥

ज्यों केवलज्ञानी परमातम, निजानंद में तृप्त सदा।
त्यों मैं देखन जाननहारा, रहूँ स्वयं में तृप्त सदा।।
बस हो सर्व विकल्पों से, बस सहज अनुभवूँ आत्मा॥ 3॥

सहजानंदमय ज्ञानानंदमय, परमानंदमय आत्मा।
शुद्ध-बुद्ध चैतन्य स्वरूपी, नित्यानंदमय आत्मा॥
शाश्वत मंगल लोकोत्तम प्रभु, अनन्य शरण शुद्धात्मा॥ 4॥

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
Source: स्वरूप-स्मरण