धन्य- धन्य मुनिवर का जीवन । Dhanya Dhanya Munivar Ka Jeevan

धन्य-धन्य मुनिवर का जीवन, होवे प्रचुर आत्म संवेदन।
धन्य-धन्य जग में शुद्धातम, धन्य अहो आतम आराधन॥ टेक॥

होय विरागी सब परिग्रह तज, शुद्धोपयोग धर्म का धारन।
तीन कषाय चौकड़ी विनशी, सकल चरित्र सहज प्रगटावन॥1॥

अप्रमत्त होवें क्षण-क्षण में, परिणति निज स्वभाव में पावन।
क्षण में होय प्रमत्तदशा फिर, मूल अठ्ठाईस गुण का पालन॥2॥

पञ्च महाव्रत पञ्च समिति धर, पञ्चेन्द्रिय जय जिनके पावन।
षट् आवश्यक शेष सात गुण, बाहर दीखे जिनका लक्षण ॥3॥

विषय कषायारम्भ रहित हैं, ज्ञान ध्यान तप लीन साधुजन।
करुणा बुद्धि होय भव्यों प्रति, करते मुक्ति मार्ग सम्बोधन॥4॥

रचना शुभ शास्त्रों की करते, निरभिमान निस्पृह जिनका मन।
आत्मध्यान में सावधान हैं, अद्भुत समतामय है जीवन॥5॥

घोर परीषह उपसर्गों में, चलित न होवे जिनका आसन।
अल्पकाल में वे पावेंगे, अक्षय, अचल, सिद्ध पद पावन॥6॥

ऐसी दशा होय कब ‘आत्मन्’, चरणों में हो शत-शत वंदन।
मैं भी निज में ही रम जाऊँ, गुरुवर समतामय हो जीवन॥7॥