धन्य धन्य है घड़ी आज की, जिनध्वनि श्रवण परी।
तत्त्व प्रतीति भई अब मेरे, मिथ्या दृष्टि टरी ।।
मेरे मिथ्या दृष्टि टरी ।।टेक।।
जड़ तें भिन्न लखी चिन्मूरत, चेतन स्वरस भरी।
अहंकार ममकार बुद्धि पुनि, पर में सब परिहरी ।।1।।
पाप पुण्य विधि बंध अवस्था, भासी अति दुखभरी।
वीतराग विज्ञान ज्ञानमय, परिणति अति विस्तरी ।।2।।
चाह दाह विनसी बरसी, पुनि समता मेघ झरी।
बाढ़ी प्रीति निराकुल पद सों, ‘भागचंद’ हमरी ।।3।।
Artist - श्री भागचंद जी
Singer: @Nitasha_Jain