धनि जिनराज विराजे हैं | Dhani jinraaj viraje hain

(तर्ज -धन्य मुनिराज हमारे हैं…)

धनि जिनराज विराजे हैं-2।।

शांत दिगम्बर मुद्रा शोभे, आसन अचल सु धारे हैं।
इन्द्रादिक चरणन शिर नावें, अनुपम प्रभुता धारे हैं।।1।।

अन्तर्मुख मुद्रा अविकारी, हाथ पै हाथ सु-राजे हैं।
समवशरण की अद्भुत शोभा, अन्तरीक्ष प्रभु राजे हैं। 2 ।।

भामण्डल शोभे सुखकारी, चौंसठ चमर सु-ढारे हैं।
रागादिक से शून्य ज्ञानमय, परमानन्द विस्तारे हैं ।।3।।

भवसागर से आप तिरे प्रभु, भक्तजनों को तारे हैं।
अहो आपकी शरणा आये, आत्मस्वरूप निहारे हैं।4।।

शीश नवावें, भावना भावें, रहें सु जाननहारे हैं।
कर्म कलंक समूल नशावें, पद पावें अविकारे हैं।।5।।

Artist: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’

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