धनि-धनि ते मुनि गिरी वनवासी |
मार-मार जग जार जार तें, द्वादस व्रत तप अभ्यासी || टेक ||
कौड़ी लाल पास नहिं जाके, जिन छेदी आसापासी |
आतम-आतम पर-पर जानै, द्वादश तीन प्रकृति नासी || १ ||
जा दुःख देख दुःखी सब जग ह्वै, सो दुःख लख सुख ह्वै तासी |
जाकों सब जग सुख मानत है, सो सुख जान्यो दुःखरासी || २ ||
बाहिज भेष कहत अन्तर गुण, सत्य मधुर हित मित भासी |
‘घानत’ ते शिवपंथ पथिक हैं, पांव परत पातक जासी || ३ ||
Artist- पं. घानतराय जी