देवों के देव श्री जिनदेव! नाथों के नाथ श्री जिननाथ ॥ टेक ॥
महापुण्य से दर्शन पाया, भक्ति भाव उर में उमगाया ।
स्वयमेव चरणों में झुकता है माथ । नाथों के नाथ श्री जिननाथ ॥१॥
तुम ही हो जग में शरण सहारे, निरपेक्ष बांधव हो तुम ही हमारे ।
अहो अहो तुम ही हो सांचे तात । नाथों के नाथ श्री जिननाथ ॥२॥
तुम से विमुख रह बहु दु:ख उठाये, आज विघन सब सहज नशाये।
दर्शन से स्वामी हुए हम सनाथ । नाथों के नाथ श्री जिननाथ ॥३॥
तत्त्वों का स्पष्ट ज्ञान हुआ है, निज पर का भेद-विज्ञान हुआ है।
अनुभव में आया है चैतन्यनाथ । नाथों के नाथ श्री जिननाथ ।।४।।
जग से उदासी हुई सुखकारी, दूर हुए दुर्भाव विकारी।
मन में बसी है छवि मुनिनाथ। नाथों के नाथ श्री जिननाथ ॥५॥
वीतराग निर्दोष सर्वज्ञ तुम्हीं हो, तीर्थ प्रणेता हितैषी तुम्हीं हो।
सवमशरण में न हो दिन-रात । नाथों के नाथ श्री जिननाथ ॥६॥
चतुर्निकाय के इन्द्र नमत हैं, चक्री नरेन्द्र मृगेन्द्र नमत हैं।
मुनीन्द्र गणीन्द्र नवावत हैं माथ। नाथों के नाथ श्री जिननाथ ।।७।।
रत्नत्रयमार्ग प्रभु ने दिखाया, मोक्षार्थी भव्यों को अन्तर में भाया।
हो ऐसा बल ध्यावें हम निजनाथ। नाथों के नाथ श्री जिननाथ ॥८॥
Artist - ब्र.श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’