देखो जी आदीश्वर स्वामी | Dekho Ji Adhishwar Swami

देखो जी आदीश्वर स्वामी, कैसा ध्यान लगाया है ।
कर ऊपर कर सुभग विराजे, आसन थिर ठहराया है ।।

जगत विभूति भूति सम तजकर, निजानंद पद ध्याया है।
सुरभित श्वासा आशा वासा, नाशा-दृष्टि सुहाया है।।1।।

कंचन वरण चले मन रंच न, सुरगिरि ज्यों थिर थाया है।
जास पास अहि मोर मृगी हरि, जाति विरोध नसाया है।।2।।

शुद्ध उपयोग हुतासन में जिन, वसुविधि समिध जलाया है।
श्यामलि अलकावलि सिर सोहे, मानो धुँआ उड़ाया है।।3।।

जीवन मरण अलाभ लाभ जिन, सबको साम्य बनाया है।
सुर नर नाग नमहिं पद जाके, ‘दौल’ तास जस गाया है।।4।।

Artist - पंडित दौलतराम जी

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What does these lines mean?

@Sarvarth.Jain
@anubhav_jain
@Sulabh
@Mitali_Jain
@Nikshep
@Divya
@Ayush

P.S. - This thread doesn’t springs up on homepage so mentioning.

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For shyamali alkawali sir sohe mano dhuan udaya hai
If we the line above this it Creates a simile that it seems like ki bhagwaan ne shuudh upyog roopi agni mein asta karm ko jalaya hai to jab hum kisi cheez ko jalate hai vo black smog produce krti hai to jo line hai usme shyamali ka mtlb black, alkawali ka mtlb hair to kavi keh rahe hai ki aapke sir par jo kaale baal hai vo aise lag rahe hai ki jaise karma agni ka dhuan udd raha ho.
This meaning was interpreted by kalpana ben.

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:point_right: अर्थ - हे भाई, देखो! भगवान आदिनाथ स्वामी ने कैसा अद्भुत ध्यान लगा रखा है।
एक हाथ के ऊपर दूसरा हाथ सुंदरतापूर्वक विराजमान है और आसन स्थिरता पूर्वक जमा हुआ है।

  1. श्री आदिनाथ स्वामी जगत की विभूति को राख के समान त्यागकर निजानन्द स्वरूप का ध्यान कर रहे है।
    उनकी श्वास सुगंधित है, उन्होंने दिशारूपी वस्त्र धारण कर रखे है अर्थात् वे नग्न दिगम्बर मुद्रा में है और नासादृष्टिपूर्वक विराजमान हैं।।

  2. उनके शरीर का वर्ण कंचन जैसा है, उनका मन ध्यान से रंचमात्र भी चलायमान नहीं है, सुमेरु पर्वत की तरह अचल है ।
    उनके पास सर्प-मोर, हिरन-शेर आदि जन्मजात विरोधी जीवों की भी शत्रुता समाप्त हो गयी है ।।

  3. श्री आदिनाथ स्वामी ने शुद्धोपयोगरूपी अग्नि में अष्टकर्मरूपी ईंधन को जला दिया है।
    तथा उनके सिर पर काली लटें इसप्रकार सुशोभित हो रही हैं, मानो उसी का धुआं उड़ रहा हो

  4. कविवर दौलतराम जी कहते है कि जो जीवन और मरण, हानि और लाभ तथा तृण और मणि आदि सबको समान दृष्टि से देखते हैं, मैं भी उन श्री आदिनाथ स्वामी का यशोगान करता हूँ।।:pray:t2::ok_hand:t2::pray:t2:

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@Sowmay Read this meaning. You asked some months before.

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Very nice. I always stay confused with 3rd para. Now, all clear. Thanks.

We had added your post as a meaning in the very first bhakti post. Check out :slight_smile:

Can you write meanings of all the prachin bhaktis on this forum?

यह देव भक्ति नहीं है अपितु ध्यानस्थ गुरु भक्ति है। हे मुनि आदिनाथ! आपके सिर पर काली लटें ऐसी उड़ रही हैं मानो आपने शुद्धोपयोग रूप अग्नि से आठ कर्मों रूप ईंधन को जलाकर उनका धुआं उड़ाया है।

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