Divya
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देखा जब अपने अंतर को कुछ और नहीं भगवान हूँ मैं
पर्याय भले ही पामर हो अंतर से वैभववान हूँ मैं ॥
चैतन्य प्राणों से जीवित नित, इंद्रिय बल श्वासोच्छवास नहीं,
हूं आयुरहित शिव अजर अमर, सच्चिदानंद गुणखान हूँ मैं ॥(1)
आधीन नहीं संयोगों के, पर्यायों से अप्रभावी हूं,
स्वाधीन अखंड प्रतापी हूं, निज से ही प्रभुतावान हूँ मैं ||(2)
सामान्य विशेषों सहित विश्व, प्रत्यक्ष झलक जावें क्षण में,
सर्वज्ञ सर्वदर्शी आदिक, सम्यक् निधियों की खान हूं मैं ॥(3)
सौ धर्मों में व्याप्ति विभु हूं, अरु धर्म अनंतामयी धर्मी,
नित निज स्वरूप की रचना से, अंतर में धीरजवान हूँ मैं ॥(4)
मेरा वैभव शाश्वत अक्षुण्ण, पर से आदान प्रदान नहीं,
त्यागोपादान शून्य निष्क्रिय, अरु अगुरुलघु गुणधाम हूँ मैं ॥(5)
तृप्ति आनंदमयी प्रगटी, जब देखा अंतरनाथ हूं मैं,
नहीं रही कामना अब कोई, बस निर्विकार निष्काम हूँ मैं ॥(6)
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देखा जब अपने अन्तर में, कुछ और नहीं भगवान हूँ मैं |
पर्याय ही दीन हीन पामर, अन्तर में वैभववान हूँ मैं || टेक ॥
चैतन्य प्राण से जीवित हूँ नित, इन्द्रिय बल श्वासोच्छवास नहीं ।
हूँ आयु रहित शिव अजर-अमर, सच्चिदानंद गुणधाम हूँ मैं ।।1।।
अधीन नहीं संयोगों के पर्यायों से अप्रभावी हूँ ।
स्वाधीन अखण्ड प्रतापी हूँ, निज से ही प्रभुतावान हूँ मैं ।। 2 ।।
सामान्य-विशेषों सहित विश्व प्रत्यक्ष झलक जावे क्षण में ।
सर्वज्ञ-सर्वदर्शी आदिक, सम्यक् निधियों की खान हूँ मैं ।। 3 ।।
स्वधर्मों में व्यापी विभु हूँ, अरु धर्म अनन्तों मय धर्मी।
नित निज स्वरूप की रचना की सामर्थ्य से वीरजवान हूँ मैं ।। 4 ।।
मेरा वैभव शाश्वत अक्षुण्ण, पर से आदान-प्रदान नहीं।
त्यागोपादान शून्य निष्क्रिय, अरु अगुरुलघु शिवधाम हूँ मैं || 5 ||
Source - स्वरूप स्मरण
रचयिता - आ. बा. ब्र. रवीन्द्र जी आत्मन्
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