कर्म का उदय और उपशम के समय के बारे में किस शास्त्र में वर्णन है? हम सभी के कार्मण शरीर में असंख्यात - असंख्यात कर्म चिपके हुए हैं, यह कैसे डिसाइड होता है कि कौन सा कर्म कब उदय में आएगा क्योंकि चाहे जितने भी कर्म हों लेकिन अगर चौथा काल और अच्छा गुरु मिल जाए तो शुक्ल ध्यान में लीन होकर सभी कर्मों को नष्ट कर देता है ।
कभी - कभी हम किसी कर्म के उदय से एक ऐसी गलती कर देते हैं जिससे पूरे जीवन पर उसका प्रभाव पड़ता है , उस कर्म का उदय ही क्यों हुआ, उस समय उसका उपशम क्यों नहीं हुआ था ?
देव दर्शन & पूजा करने से भी असंख्यात कर्म नष्ट हो जाते हैं तो कौन से कर्म नष्ट होते हैं यह भी कैसे डिसाइड होता है ?