ण कुणदि किंचि वि कोहो, तस्स खमा होदि धम्मो त्ति ॥71॥
अन्वयार्थ- यदि क्रोध की उत्पत्ति का साक्षात् बहिरंग कारण हो फिर भी जो कुछ भी क्रोध नहीं करता उसके क्षमा धर्म होता है ॥
उवसग्गे वि रउद्दे तस्स खमा णिम्मला होदि ॥394॥
जो (मुनि) देव मनुष्य तिर्यंच आदि से रौद्र (भयानक घोर) उपसर्ग करने पर भी क्रोध से तप्तायमान नहीं होता है उस मुनि के निर्मल क्षमा होती है।
आक्रोशताडनादीनां कालुष्योपरमः क्षमा॥१४॥
अर्थ- गाली देना तथा मारना आदिक क्रोध की उत्पत्ति के बहुत भारी निमित्तों के रहते हुए भी कलुषता का अभाव होना क्षमा है।
क्रोध की उत्पत्ति के निमित्तभूत असह्य आक्रोशादि के सम्भव होने पर भी कालुष्य भाव का नहीं होना क्षमा है।
वपि सति न विकारं, यन्मनो याति साधोः ।
अमलविपुलचित्तैरुत्तमा सा क्षमादौ-;
शिवपथपथिकानां , सत्सहायत्वमेति ॥82॥
अन्वयार्थ: मूर्खजनों द्वारा किए हुए बन्धन, क्रोध, हास्य आदि के होने पर तथा कठोर वचनों के बोलने पर भी जो साधु, अपने निर्मल धीर-वीर चित्त से विकृत नहीं होता, उसी का नाम उत्तम क्षमा है । यह उत्तम क्षमा, मोक्षमार्ग में जाने वाले मुनियों की सबसे पहले सहायता करने वाली है ।
क्रोध नहीं करना तथा संसार के तमाम जीवों से मैत्री भाव का होना उत्तम क्षमा कहलाता है। अगर किसी जीव ने कर्म के उदय से किसी जीव के साथ कोई तरह का दुर्व्यवहार रूप गाली देना, मारना आदि किया हो तो उसको सुनकर या सहकर मन में क्लेश न करते हुए उसको क्षमा कर देना सो ही क्षमा धर्म है।
मित्ती मे सव्वभूदेसु, बेरं मज्झं ण केण वि।।43।।
मैं सब जीवों को क्षमा करता हूँ। सब जीव मुझे क्षमा करें। मेरा सब जीवों के प्रति मैत्री भाव है। मेरा किसी से वैर नही है।
I forgive all living beings and may all living beings forgive me: I cherish feelings of friendship towards all and I harbour enmity towards none. (43)
उत्तमक्षमा तीनलोक में सार है। उत्तमक्षमा संसार समुद्र से तारनेवाली है, रत्नत्रय को धारण करानेवाली है, दुर्गति के दुःखों को हरनेवाली है। जिसके उत्तमक्षमा होती है, उसका नरक - तिर्यंच दोनों गतियों में गमन नहीं होता है । उत्तमक्षमा के साथ अनेक गुणों का समूह प्रकट होता है। मुनिराजों को तो अति प्यारी उत्तमक्षमा ही है। उत्तम क्षमा की प्राप्ति को ज्ञानीजन तो चिन्तामणि रत्न की प्राप्ति के समान लाभ मानते हैं । उत्तमक्षमा ही मन की उज्ज्वलता करती है। क्षमागुण के बिना मन की उज्ज्वलता तथा स्थिरता कभी नहीं होती है। वांछित अभिप्राय की सिद्धि करनेवाली एक उत्तमक्षमा ही है।