चित्त! चेतनकी यह विरियां रे । Chitt Chetan ki Yah viriya re

चित्त! चेतनकी यह विरियां रे

(राग सोरठ)

चित्त! चेतनकी यह विरियां रे ।।टेक ।।
उत्तम जनम सुतन तरूनापौ, सुकृत बेल फल फरियां रे ।।
लहि सत-संगतिसौं सब समझी, करनी खोटी खरियां रे ।
सुहित संभाल शिथिलता तजिदैं, जाहैं बेली झरियां रे ।।१ ।।
दल बल चहल महल रूपेका, अर कंचनकी कलियां रे ।
ऐसी विभव बढ़ी कै बढ़ि है, तेरी गरज क्या सरियां रे ।।२ ।।
खोय न वीर विषय खल साटैं, ये क्रोड की घरियां रे ।
तोरि न तनक तगा हित `भूधर’ मुकताफलकी लरियां रे ।।३ ।।

रचयिता: कविवर श्री भूधरदास जी

Source: आध्यात्मिक भजन संग्रह (प्रकाशक: PTST, जयपुर )