छांडत क्यौं नहिं रे । Chhandat Kyon Nahin Re

छांडत क्यौं नहिं रे, हे नर! रीति अयानी ।
बारबार सिख देत सुगुरु यह, तू दे आनाकानी ।।छांडत… ।।टेक।।

विषय न तजत न भजत बोध व्रत, दुख सुखजाति न जानी ।
शर्म चहै न लहै शठ ज्यौं घृतहेत विलोवत पानी ।।१ ।।छांडत. ।।

तन धन सदन स्वजनजन तुझसौं, ये परजाय विरानी ।
इन परिनमन विनश उपजन सों, तैं दु:ख सुख-कर मानी ।।२ ।।छांडत. ।।

इस अज्ञानतैं चिरदुख पाये, तिनकी अकथ कहानी ।
ताको तज दृग-ज्ञान-चरन भज, निजपरनति शिवदानी ।।३ ।।छांडत. ।।

यह दुर्लभ नर-भव सुसंग लहि, तत्त्व लखावत वानी ।
`दौल’ न कर अब पर में ममता, धर समता सुखदानी ।।४ ।।छांडत. ।।

Artist- पं.दौलतराम जी