छहढाला क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- प्रो. वीरसागर जैन। (मो. 9868888607)
कविवर पण्डित दौलतराम कृत ‘छहढाला’ की लोकप्रियता आश्चर्यजनक है। इस ग्रन्थ की रचना को अभी कुल 190 वर्ष हुए हैं, परन्तु संसार में प्रायः सर्वत्र ही इसका अद्भुत प्रचार देखा जाता है। देश में ही नहीं, विदेशों में भी अधिकांश लोग इसका मनोयोगपूर्वक स्वाध्याय करते हैं। इतना ही नहीं, हजारों लोग तो ऐसे भी मिलते हैं, जिन्होंने इसे पूरा कंठस्थ कर रखा है और प्रायः प्रतिदिन इसका पाठ भी करते हैं। गूगल और यूट्यूब पर भी इसके अनगिनत संगीतमय पाठ उपलब्ध हैं और घर-घर में निरन्तर चलते ही रहते हैं। बड़े-बड़े विद्वान् ही नहीं, मुनिगण भी इसका सभा में स्वाध्याय करते-कराते हैं। यह ग्रन्थ यद्यपि दिगम्बर जैन परम्परा का है, परन्तु फिर भी मैंने इसके बीसों छन्द श्वेताम्बर मन्दिरों और स्थानको में भी दीवार पर लिखे हुए देखे हैं, बारह भावना के रूप में इसकी पूरी पाँचवीं ढाल लिखी हुई देखी है, ज्ञान के महत्त्व वाले छन्द भी बहुत अधिक लिखे देखे हैं। इसके अतिरिक्त साहित्य के इतिहास-ग्रन्थों में भी यत्र-तत्र इसके महत्त्व प्रकाशक उल्लेख प्राप्त होते हैं। विचारणीय है कि आखिर यह छहढाला इतना अधिक महत्वपूर्ण क्यों है, मेरी दृष्टि में इस छहढाला की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -
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संक्षिप्तता - यह छहढाला संक्षिप्त और सारगर्भित भी है। इसकी एक-एक ढाल में इतना अर्थ भरा है कि उस पर चार-चार ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं। यही कारण है कि इसके बारे में कहावत प्रसिद्ध है कि इसमें तो ‘गागर में सागर’ भरा हुआ है।
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सम्पूर्णता - छहढाला की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें सम्पूर्णता है, यह अपने आप में एक सम्पूर्ण ग्रन्थ है। अनेक ग्रन्थ ऐसे होते हैं, जिन्हें समझने के लिए अन्य ग्रन्थों पर निर्भर रहना पड़ता है या उसमें कुछ शेष बचा-सा रह जाता है, पर ऐसा इसमें कुछ भी नहीं है।
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प्रामाणिकता - छहढाला एक अत्यन्त प्रामाणिक ग्रन्थ है। इसकी एक-एक पंक्ति प्राचीन-संस्कृत के मूल आगम-ग्रन्थों के आधार से लिखी गई है। अनेक स्थानों पर तो ऐसा लगता है मानों उनका छायानुवाद ही हो। दरअसल, इसके रचयिता कविवर पण्डित दौलतरामजी व्यवसाय करते समय भी प्राकृत-संस्कृत के मूल आगम-ग्रन्थों को कंठस्थ करते रहते थे और यह उसी का प्रभाव है कि यह ग्रन्थ इतना आगमानुकूल, प्रामाणिक बना।
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आध्यात्मिकता- छहढाला में सामान्य धर्म-दर्शन भी नहीं है, अपितु उसका सार है, नवनीत है, अध्यात्म है। छहढाला एक उच्च कोटि का आध्यात्मिक ग्रन्थ है। इसमें सीधी आत्मकल्याण की बात समझाई गई है। यही कारण है कि अनेक विद्वानों ने तो इसे ‘छोटा समयसार’ ही कह दिया है।
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सरसता - यह छहढाला गम्भीर होकर भी अत्यन्त सरस काव्य है, किंचित् भी बोझिल नहीं है। इसे पढ़ते हुए पाठक को एकदम कहानी जैसा रस आता है और वह उसमें भावविभोर होकर डूब जाता है। यही कारण है कि पाठशाला के बच्चे भी इस छहढाला का रूचिपूर्वक अध्ययन करते देखे जाते हैं।
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क्रमबद्धता - इस छहढाला में क्रमबद्धता या प्रवाहशीलता का भी अद्भुत गुण दृष्टिगोचर होता है, जिसके कारण इसका पाठक इससे अन्त तक प्रगाढ़ रूप से वैधा रहता है।
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सम्यग्दर्शन-ज्ञान का महत्त्व- निरूपण वैसे तो यह छहढाला का हर छन्द ही अनमोल रत्न है, परन्तु इसकी तीसरी और चौथी ढाल में जो सम्यम्दर्शन और सम्यग्ज्ञान की महिमा बताने वाले कुछ खास छन्द आये हैं, वे तो बहुत ही अद्भुत अपूर्व हैं। छहढाला को लोकप्रिय बनाने में, जन-जन तक पहुँचाने में उन छन्दों का भारी योगदान है। जैसे कि ‘मोक्षमहल की परथम सीढ़ी या बिन ज्ञान-चारित्रा’ अथवा ‘ज्ञान समान न आन जगत में सुख कौ कारन’ इत्यादि।
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द्रव्यानुयोग और चरणानुयोग की मैत्री- इस छहढाला में द्रव्यानुयोग और चरणानुयोग की भी सुन्दर मैत्री हुई है। प्रायः ऐसा होता है कि कोई ग्रन्थ केवल द्रव्यानुयोग की ही बात समझाता है और कोई ग्रन्थ केवल चरणानुयोग की ही बात समझाता है, परन्तु इस छहढाला में इन दोनों ही अनुयोगों की बात भलीभांदित समझाई गई है। इससे इसमें सर्वांगीणता आ गई है।
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ज्ञान और वैराग्य की मैत्री- द्रव्यानुयोग और चरणानुयोग की भांति इस छहढाला में ज्ञान और वैराग्य की भी सुन्दर मैत्री दिखाई देती है। इसमें भी प्रायः ऐसा होता है कि कोई केवल ज्ञान का उपदेश देते हैं और कोई केवल वैराग्य का ही उपदेश देते है, परन्तु इस छहढाला में इन दोनों का ही अद्भुत सुमेल है। मोक्षमार्ग में इन दोनों का बड़ा योगदान होता है। सामान्य दृष्टि से देखें तो पहली और पाँचवी ढाल वैराग्यप्रधान है और शेष चार ढाल ज्ञानप्रधान हैं।
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मंगलाचरण - इस छहढाला को महत्त्व मिलने का एक प्रमुख कारण इसका मंगलाचरण भी है, जो बहुत ही सारगर्भित है। जिस प्रकार तत्त्वार्थसूत्र को महत्त्व दिलाने में उसके मंगलाचरण की बड़ी भूमिका रही है, उसी प्रकार इस छहढाला को महत्त्व दिलाने में इसके मंगलाचरण की बड़ी भूमिका है।
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गेयता - इस छहढाला की गेयता भी जबरदस्त है। उस गेयता का अनुभव तो सभी पाठक करते ही हैं। इसकी हर हाल में अलग-अलग राग का प्रयोग है, जो एकदम भावानुरूप और अत्यन्त मधुर है। उसको गाते या सुनते समय मन डोलने लगता है।
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नामकरण - छहढाला को लोकप्रिय बनाने में इसके नामकरण का भी बड़ा योगदान है। यद्यपि यह एक विधा है, पर बहुत ही अर्थपूर्ण है। विद्वानों ने इसके इस नामकरण के अनेक आध्यात्मिक अर्थ किये हैं। जैसे कि जो सभी ओर से हमारी रक्षा करे, वह छहढाला है। युद्ध में तो एक ही ढाल हमें शत्रु-प्रहार से बचाती है, पर यह तो छहों ओर से हमें संसार-दुःखों से बचाती है।
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भाषा - छहढाला को लोकप्रिय बनाने में इसकी भाषा का भी बड़ा योगदान है। वह भी कुछ विशेष है। वह न तो प्राचीन या मध्यकाल की ब्रज भाषा ही है, जो उस समय बहुत अधिक चल रही थी और न ही आज की आधुनिक खड़ी बोली है। वह तो उन दोनों का ऐसा आभिजात्य मिश्रण है, जो एक साथ प्राचीनता और आधुनिकता दोनों का आनन्द देती है। इसकी शुद्ध परिष्कृत किन्तु कोमलकान्त पदावली बहुत ही आकर्षक बन गई है। केवल आकर्षक ही नहीं, उचित भाव-सम्प्रेषण में समर्थ भी।
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विविध भाषाओं में अनुवाद- इस छहढाला के अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हुए हैं। न केवल भारतीय भाषाओं में, अपितु अंग्रेजी, रशियन आदि अनेक विदेशी भाषाओं में भी इसके अनुवाद हुए हैं। मेरे एक मित्र तो इसका संस्कृत भाषा में भी अनुवाद कर रहे थे, पर वह अभी पूर्ण नहीं हुआ है।
इस प्रकार यहाँ मैंने कविवर पण्डित दौलतराम कृत ‘छहढाला’ के महत्त्वपूर्ण होने के कतिपय प्रमुख कारणों की ओर आपका ध्यान आकर्षित किया है। हो सकता है कि आपके ध्यान में कुछ और भी कारण हो, कृपया उन्हें भी इनमें जोड़ लीजिए और इस छहढाला के अध्ययन-अध्यापन में विशेष प्रवृत्ति कीजिए यही मेरा विनम्र अनुरोध है। यह बहुत ही लाभदायक शास्त्र है। इसमें सभी शास्त्रों का सार भरा हुआ है और वह भी अत्यन्त सरल-सुबोध भाषा-शैली में। अतः हमें इस पर अवश्य ही ध्यान देना चाहिए। जो लोग प्राकृत-संस्कृत के मूल आगम-ग्रन्थ नहीं पढ़ पाते, उन्हें तो अवश्य ही इसका अध्ययन करना चाहिए।
सन्मतिवाणी / 25 जुलाई 2024