चेतन अपनो रूप निहारो, नहीं गोरो नहीं कारो |
दर्शन ज्ञान मयी तिन मूरत, सकल कर्म ते न्यारो।
जाकी बिन पहचान किये ते, सहो महा दुख भारो,
जाके लखे उदय हुए तत्क्षण, केवलज्ञान उजारो।(1)
कर्म जनित पर्याय पाय ना, कीनो आप पसारो |
आपा पर स्वरूप ना पिछान्यो, तातें सहो रुझारो।(2)
अब निज में निज जान नियत कहां सो सब ही उरझारो |
जगत राम सब विधि सुखसागर, पद पाओ अविकारो।(3)
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