भोजन
पहले दर्शन बाद में भोजन
पहले पूजन बाद में भोजन ।
पहले स्वाध्याय बाद में भोजन
पहले दान बाद में भोजन ।
संयम सहित करें हम भोजन
तप वृद्धि करने को भोजन ।
आसक्ति ताज करें सु भोजन
रहकर मौन करें हम भोजन ।
द्रव्य शुद्ध हो क्षेत्र शुद्ध हो
काल शुद्ध हो भाव शुद्ध हो ।
शुद्धि सहित करें हम भोजन
शान्तचित्त हो करें सु भोजन ।
नहीं हमारा यह जड़ भोजन
करें ज्ञानमय नित ही भोजन ।
रचयिता: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’