भावे भजो भावे भजो जिनराया,
चौबीस जिनवर पाया जी पाया ।।
ऋषभ अजित संभव अभिनन्दन,
सुमति पद्म सुपार्श्व पद वंदन;
आतम में अपनापन करके मिथ्यातम को दूर भगाया।
जिनवर भजूँ आतम लखूं जिनराया ॥(1)
चंद्र पहुप शीतल श्रेयांश जिन,
वासुपूज्य अरहन्त महा जिन;
वीतराग परिणति प्रगटाकर निर्ग्रंथों का पथ अपनाया।
समकित लहूँ चारित्र लहूँ, जिनराया॥(2)
विमल अनन्त धर्म जस उज्ज्वल,
शान्ति कुन्थु अर मल्लि सुर्निमल;
शुक्लध्यान की श्रेणी चढ़कर क्षण में केवलज्ञान उपाया।
आनन्द लहूँ कैवल्य लहूँ, जिनराया॥(3)
मुनिसुव्रत नमि नेमि पार्श्व प्रभु,
वर्धमान जिनराज महाविभु;
स्याद्वादमय दिव्यध्वनि से जग को मुक्ति-मार्ग बताया।
ऐसा बनूँ तुम जैसा बनूँ, जिनराया॥(4)