भरतक्षेत्र के भावि तीर्थंकरों की स्तुति
महापद्मादि भावि तीर्थंकर, कैसे भक्ति करूँ ?
भावी दशा लक्ष्य में लेकर, चरणों शीश धरूँ ।टेक
जब निज शुद्धातम पहिचाने, निज में तृप्ति लहें।
ऐसे भाव होंय उर में, सब ऐसा सुख लहें ।।
जिनवर सम्यकदर्श विशुद्धि, मैं भी प्रगट करूँ ।।1
होंय भावना सोलह कारण, तीर्थंकर पद की।
होंगे शुभ कल्याणक भावना सफल होय जग की ।।
मैं भी आत्म-साधना का, अनुमोदन नाथ करूँ ।।2
धन्य घड़ी जब आप धरेंगे, अन्तिम मुनि दीक्षा।
होकर भवि प्रतिबुद्ध, साथ में ही लेंगे दीक्षा ।।
यही भावना मैं भी स्वामी, निर्ग्रन्थ रूप धरूँ ।।3
आत्मलीन हो प्रगटायेंगे, अनंत चतुष्टय नाथ।
मंगल धर्म तीर्थ वर्तेगा, भविजन होंय सनाथ।।
भावी नैगमनय से जिनवर, स्तुति अभी करूँ।।4
Artist:- Br. Ravindra ji ‘Atman’