बनें महान। Bane Mahan। नित जिनवर के दर्शन करते। Nit Jinvar ke Darshan Karte

नित जिनवर के दर्शन करते।
गुरुओं को भी वंदन करते ।। 1 ।।

जिनवाणी को सुनते पढ़ते
यथायोग्य व्यवहार जो करते ।। 2।।

रात्रि में नहीं भोजन करते ।
नहीं अयोग्य भोजन जो करते ।। 3 ।।

छना हुआ जल काम में लेते।
सत्संगति में ही नित रहते ।। 4 ।।

नशा, जुआ, अन्याय, कुशील।
त्याग सर्वथा, पालें शील ।। 5 ।।

करें स्व-पर का जो कल्याण
रत्नत्रय’ धर बनें महान् ।।6।।

उक्त रचना में प्रयुक्त हुए कुछ शब्दों के अर्थ-
१. सत्संगति= अच्छे लोगों की संगत
२. रत्नत्रय =सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र

पुस्तक का नाम:" प्रेरणा "
पाठ क्रमांक: ०५
रचयिता: बाल ब्र. श्री रवीन्द्र जी 'आत्मन् ’