बनारसी दास जी कृत निमित्त - उपादान दोहा । Banarasi Das Ji krit Nimitt Upadan Doha

निमित्त - उपादान दोहा

निमित्त का पक्ष

गुरू उपदेश निमित्त बिन, उपदान बलहीन ।
जयों नर दूजे पाँव बिन, चलवे को आधीन ॥ १ ॥

हौ जाने था एक ही, उपादान सौं काज ।
थके सहाई पौन बिन, पानी माहिं जहाज ॥२ ॥

उपादान का समाधान

ज्ञान नैन किरिया चरन, दोऊ शिव मग धार ।
उपदान निहचै जहाँ, तहाँ निमित्त व्यवहार ॥३ ॥

उपादान निजगुण जहाँ, तहाँ निमित्त पर होय ।
भेदज्ञान परवान विधि, विरला बूझे कोय ॥४ ॥

उपादान बल जहाँ तहाँ, नहिं निमित्त को दाव ।
एक चक्र सौं रथ चले, रवि को यह स्वभाव ॥५॥

सधै वस्तु असहाय जहँ, तहँ निमित्त है कौन ?
ज्यों जहाज परवाह में, तिरे सहज बिन पौन ॥६॥

उपादान विधि निरवचन, है निमित्त उपदेश ।
बसे जु जैसे देश में, करै सु तैसे भेष ॥७ ॥

सोर्स: बृहद आध्यात्मिक संग्रह

रचयिता: पंडित श्री बनारसीदास जी