निमित्त - उपादान दोहा
निमित्त का पक्ष
गुरू उपदेश निमित्त बिन, उपदान बलहीन ।
जयों नर दूजे पाँव बिन, चलवे को आधीन ॥ १ ॥
हौ जाने था एक ही, उपादान सौं काज ।
थके सहाई पौन बिन, पानी माहिं जहाज ॥२ ॥
उपादान का समाधान
ज्ञान नैन किरिया चरन, दोऊ शिव मग धार ।
उपदान निहचै जहाँ, तहाँ निमित्त व्यवहार ॥३ ॥
उपादान निजगुण जहाँ, तहाँ निमित्त पर होय ।
भेदज्ञान परवान विधि, विरला बूझे कोय ॥४ ॥
उपादान बल जहाँ तहाँ, नहिं निमित्त को दाव ।
एक चक्र सौं रथ चले, रवि को यह स्वभाव ॥५॥
सधै वस्तु असहाय जहँ, तहँ निमित्त है कौन ?
ज्यों जहाज परवाह में, तिरे सहज बिन पौन ॥६॥
उपादान विधि निरवचन, है निमित्त उपदेश ।
बसे जु जैसे देश में, करै सु तैसे भेष ॥७ ॥
सोर्स: बृहद आध्यात्मिक संग्रह
रचयिता: पंडित श्री बनारसीदास जी