बालबोध पाठमाला भाग २ | Balbodh Pathmala Part-2 [Hindi & English]

पाठ चौथा: सदाचार

बाल-सभा

(कक्षा चार के बालकों की एक सभा हो रही है। बालकों में से ही एक को ग्रध्यक्ष बनाया गया है। वह कुर्सी पर बैठा है।)

अध्यक्ष (खड़े होकर): अब आपके सामने शान्तिलाल एक कहानी सुनायेंगे।

शान्तिलाल (टेबल के पास खड़े होकर ) -
माननीय अध्यक्ष महोदय एवं सहपाठी भाइयो और बहिनो !
अध्यक्ष महोदय की आज्ञानुसार मैं आपको एक शिक्षाप्रद कहानी सुनाता हूँ। आशा है आप शान्ति से सुनेंगे।
एक बालक बहुत हठी था। वह खाने-पीने का लोभी भी बहुत था। जब देखो तब अपने घर पर अपने भाई-बहिनों से ज़रा-ज़रा सी चीजों पर लड़ पड़ता था, उसकी माँ उसे बहुत समझाती | एक दिन उसके घर मिठाई बनी। माँ ने सब बच्चों को बराबर बाँट दी। सब मिठाई पाकर प्रसन्न होकर खाने -लगे पर वह कहने लगा मेरा लड्डू छोटा है। दूसरे बच्चे तब तक लड्डू खा चुके थे, नहीं तो बदल दिया जाता। वह क्रोधी तो था ही, जोर-जोर से रोने लगा और गुस्से में आकर लड्डू भी फेंक दिया। जाकर एक कोने में लेट गया। दिन भर खाना भी नहीं खाया।
सबने बहुत मनाया पर वह तो घमण्डी भी था न, मानता कैसे? कोने में था एक बिच्छू और बिच्छू ने उसको काट खाया। उसे अपने किए की सजा मिल गई। दिन भर भूखा रहा, लड्डू भी गया और बिच्छू ने काट खाया सो अलग। क्रोधी, मानी, और हठी बालकों की यही दशा होती है । इसलिये हमें क्रोध, मान, लोभ एवं हठ नहीं करना चाहिये। इतना कहकर मैं अपना स्थान ग्रहण करता हूँ।
(तालियों की गड़गड़ाहट)

अध्यक्ष (खड़े होकर) - शान्तिलाल ने बहुत शिक्षाप्रद कहानी सुनाई है। अब मैं निर्मला बहिन से निवेदन करूँगा कि वे भी कोई शिक्षाप्रद बात सुनावें।

निर्मला (टेबल के पास खड़ी होकर) -
आदरनीय अध्यक्ष महोदय एवं भाइयो और बहिनो!
मैं आपके सामने भाषण देने नहीं आई हूँ। मैंने अखबार में कल एक बात पढ़ी थी, वही सुना देना चाहती हैं।
एक गाँव में एक बारात आई थी। उसके लिए रात में भोजन बन रहा था। अंधेरे में किसी ने देख नहीं पाया और साग में एक साँप गिर गया। रात में ही भोज हुआ। सब बारातियों ने भोजन किया पर चार-पाँच आदमी बोले हम तो रात में नहीं खाते। सब ने उनकी खूब हँसी उड़ाई। ये बड़े धर्मात्मा बने फिरते हैं, रात में भूखे रहेंगे तो सीधे स्वर्ग जावेंगे। पर हुआ यह कि भोजन करते ही लोग बेहोश होने लगे । दूसरों को स्वर्ग भेजने वाले खुद स्वर्ग की तैयारी करने लगे । पर जल्दी ही उन पाँचों आदमिंयोंने उन्हें अस्पताल पहुँचाया। वहाँ मुश्किल से आधों को बचाया जा सका। यदि वे भी रात में खाते तो एक भी आदमी नहीं बचता। इसलिये किसी को भी रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिये।
इतना कहकर मैं अपना स्थान ग्रहण करती हूँ।

(अपने स्थान पर ही खड़े होकर)

एक छात्र- क्यों निर्मला बहिन ? रात खाने में मात्र यही दोष है या कुछ और भी ?
अध्यक्ष (अपने स्थान पर खड़े होकर) - आप अपने स्थान पर बैठ जाइये । क्या आपको सभा में बैठना भी नहीं आता? क्या आप यह भी नहीं जानते कि सभा में इस प्रकार बीच में नहीं बोलना चाहिए तथा यदि कोई अति आवश्यक बात भी हो तो अध्यक्ष की आज्ञा लेकर बोलना चाहिए? चूँकि प्रश्न आ ही गया है, अत: यदि निर्मला बहिन चाहें तो में उनसे अनुरोध करँगा कि वे इसका उत्तर दें।

निर्मला (खड़े होकर)- यह तो मैंने रात्रि भोजन से होने वाली प्रत्यक्ष सामने दिखने वाली हानि की ओर संकेत किया है, पर वास्तव में रात्रि भोजन में गृद्धता अधिक होने से राग की तीव्रता रहती है, अत: वह आत्म-साधना में भी बाधक है।

अध्यक्ष (खड़े होकर) - निर्मला बहिन ने बड़ी ही अच्छी बात बताई है। हम सब को यही निर्णय कर लेना चाहिए कि आज से रात में नहीं खायेंगे। बहुत से साथी बोलता चाहते हैं पर समय बहुत हो गया है, अतः आज उनसे क्षमा चाहते हैं। उनकी बात अगली मीटिंग में सुनेंगे। मैं अब भाषण तो क्या दूँ पर एक बात कह देना चाहता हूँ।
मैं अभी आठ दिन पहिले पिताजी के साथ कलकत्ता गया था। वहाँ वैज्ञानिक प्रयोगशाला देखने को मिली। उसमें मैंने स्वयं अपनी आँखों से देखा कि जो पानी हमें साफ दिखाई देता है, सूक्ष्मदर्शी से देखने पर उसमें लाखों जीव नजर आते हैं। अत: मैंने यह प्रतिज्ञा करली कि अब बिना छना पानी कभी भी नहीं पीऊँगा। मैं आप लोगों से भी निवेदन करना चाहता हूँ, आप लोग भी यह निश्चय कर लें कि पानी छानकर ही पीयेंगे। इतना कहकर मैं आज की सभा की समाप्ति की घोषणा करता हूँ।
(भगवान महावीर का जयध्वनिपूर्वक सभा समाप्त होती है।)

प्रश्न -

१. पानी छानकर क्यों पीना चाहिए ?
२. रात में भोजन से क्या हानि है ?
३. क्रोध करना क्यों बुरा है ?
४. हठी बालक की कहानी अपने शब्दों में लिखिए ।
५. सभा-संचालन की विधि अपने शब्दों में लिखिए ।

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