आस्रव, संवर, निर्जरा ,पुण्य, पाप को कैसे संतुलित (balance) करें?

A quote from मोक्षमार्गप्रकाशक (p. 298) -

जो उपदेश हो, उसे यथार्थ पहिचानकर जो अपने योग्य उपदेश हो उसे अंगीकार करना। जैसे — वैद्यक शास्त्रोंमें अनेक औषधियाँ कही हैं, उनको जाने; परन्तु ग्रहण उन्हींका करे जिनसे अपना रोग दूर हो। अपनेको शीतका रोग हो तो उष्ण औषधिका ही ग्रहण करे, शीतल औषधिका ग्रहण न करे; यह औषधि औरोंको कार्यकारी है, ऐसा जाने। उसीप्रकार जैनशास्त्रोंमें अनेक उपदेश हैं, उन्हें जाने; परन्तु ग्रहण उसीका करे जिससे अपना विकार दूर हो जाये। अपनेको जो विकार हो उसका निषेध करनेवाले उपदेशको ग्रहण करे, उसके पोषक उपदेशको ग्रहण न करे; यह उपदेश औरोंको कार्यकारी है, ऐसा जाने।

यहाँ उदाहरण कहते हैं — जैसे शास्त्रोंमें कहीं निश्चयपोषक उपदेश है, कहीं व्यवहारपोषक उपदेश है। वहाँ अपनेको व्यवहारका आधिक्य हो तो निश्चयपोषक उपदेशका ग्रहण करके यथावत् प्रवर्ते और अपनेको निश्चयका आधिक्य हो तो व्यवहारपोषक उपदेशका ग्रहण करके यथावत् प्रवर्ते।

- मोक्षमार्गप्रकाशक, आठवाँ अधिकार, अनुयोगों दिखाई देनेवाले परस्पर विरोध का निराकरण, pp. 294-303

To put this in perspective, just an example from प्रथमानुयोग -

जब भील को कौए के माँस का त्याग करवाया और उसे संबोधन भी दिया गया कि इस नियम के पालन से तेरा अवश्य ही कल्याण होगा, वहाँ मुनिराज का अभिप्राय तो सर्व प्रकार के माँस को छुड़ाने का था, और प्रथम उपदेश भी उसी का दिया था, अब जब भील से नहीं बन पाया तो मात्र कौए के माँस के त्याग का नियम ग्रहण करवाया |

अब इससे न तो यह सिद्ध होता है कि मुनिराज ने बाकी समस्त प्रकार के माँस की अनुमति दी; और न ही यह सिद्ध होता है कि कौए का माँस छोड़ने मात्र से कल्याण हो जाएगा | तथा उसी समय कोई अन्य श्रावक (जिसके सभी प्रकार के माँस का त्याग हो), यह बात सुने, और सोचने लगे कि यदि भील का कल्याण हो सकता है तो मेरा तो मोक्ष पक्का, सो यह भी भ्रम है |


जो विद्यार्थी अध्ययन न करता हो उसे तो बार-बार पढ़ाई करने का ही उपदेश दिया जाएगा । परंतु जो बहुत ज्यादा अध्ययन करता हो, उसे कभी कभी ऐसा भी कहा जाएगा कि ‘अब बहुत हो गया, बाद में पढ़ना’ । उपदेश तो दोनों सही है, किन्तु ‘किस के लिए कौन-सा उपदेश है’ - यह समझ में आने पर समस्त विरोध दूर हो जाता है ।


सार इतना है -

  • विकार असंख्यात लोक प्रमाण है |

  • जिनवाणी की कोई भी बात अज्ञान / असंयम का पोषण नहीं करती |

  • देव-शास्त्र-गुरु की आज्ञा में रहकर हम अपने विकार पहिचानें और उन्हें दूर करें |

8 Likes