बाहुबलि स्वामी, महिमा अपरम्पार ।
बाहुबलि स्वामी, प्रभुता अपरम्पार । टेक
दर्शन-ज्ञान-सुख-वीरज सा, दीखे नहिं प्रभु पार ।
वीतराग होकर भी प्रभु, करते भव सागर पार ।। 1 ।।
अरे ! विराधक दुख पावें, आराधक सुख अपार । परिणामों का लहें जीव फल, आप रहें अविकार ।। 2 ।।
जैन तपस्या दर्शायी प्रभु, चाह न रही लगार ।
अहो! आप सम आप जिनेश्वर, वंदन हो अविकार ।। 3 ।।
रचयिता:- ब्र. रवीन्द्र जी आत्मन्