अवक्तव्य भंग | Avaktavya bhang

अवक्तव्य भंग का अर्थ क्या है - कहा नहीं जा सकता या ‘एक साथ’ कहा नहीं जा सकता?
क्योंकि समन्तभद्र आचार्य के वचन हैं -

सहावाच्यमशक्तितः

(आप्तमीमांसा, कारिका 18)

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एक साथ कहा नहीं जा सकता - यह अर्थ ज्यादा दृढ़ प्रतीत होता है। कारण यह कि वस्तु को कहने की सामर्थ्य तो वचनों में है ही (स्यात अस्ति आदि प्रथम तीन भंग और अंतिम तीन भंग के द्वारा यह बात स्पष्ट भी होती है; आचार्य समंतभद्र स्वामी के ही तर्क अनुसार अवक्तव्य कहकर के भी हम वस्तु का वक्तव्य तो सिद्ध कर ही देते हैं, अतः उस अपेक्षा से सभी सात भंगो के द्वारा वस्तु के बारे में कहा जा सकता है), परन्तु उनको युगपत एक साथ कहने की सामर्थ्य का अभाव है।

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कहा नहीं जा सकता तो कह ही क्यों रहे हो?
अरे! जब कह ही नहीं सकते तो मान कैसे रहे हो?

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क्योंकि

नययोगान्न सर्वथा
अर्थात् नयों के प्रयोग से समझना चाहिये, सर्वथा नहीं । - ऐसा भी वचन है ।

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भाई! यही तो कह रहा हूँ कि एक साथ कहा नहीं जा सकता - यही अवक्तव्य की परिभाषा होना चाहिए, न कि कहा ही नहीं जा सकता।

परस्पर विरोधी धर्म युगलों को विषय बनाने वाले 2 भंगों के विस्तार स्वरूप सप्तभंगी है।

निहितार्थ - नयों का प्रयोग हो जाने के उपरान्त सप्तभंग लगते हैं, न कि सप्तभंग के प्रयोग को समझने हेतु नय।

सप्तभंग - परस्पर अविरोधी गुणों में नहीं अपितु परस्पर विरोधी धर्मों में होते हैं। नयों में भी परस्पर विरोध और अविरोध दोनों ही पाया जाता है, अतः सप्तभंगी हेतु परस्पर विरोधी ही लेना उचित है।

इसके माध्यम से मैं समन्तभद्राचार्य बनने की कोशिश कर रहा था, आपने तो किरकिरी कर दी।:pray:

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क्षमा कीजिए …

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