आतमा को जाने बिना सब क्रिया व्यर्थ | Atama ko Jane Bina sab kriya vyarth

आतमा को जाने बिना सब क्रिया व्यर्थ…

कियो कहा तूने रथ मोटर में बैठि-बैठि
कियो कहा तूने वायुयान चढ़ि - चढ़ि कै।

कियो कहा तूने जड़द्रव्य कोटि जोड़ि-जोड़ि,
लेकरि गरीबन से ब्याज घढ़ि-घढ़ि कै ॥

कियो कहा तूने सत मंजली हवेलिन में,
जनता में बोले बड़े बोलि बढ़ि-बढ़ि कै।

आतम-अनातम के भेद को न जाना मूढ़,
खोये दिन बड़े-बड़े पोथे पढ़ि - पढ़ि कै ॥

न्हायो तू हजारों बार गंगा और यमुना में,
तीरथ अनेक बार वन्दे जाय जाय कै ।

बड़े-बड़े यज्ञ हू रचाये तैं अनन्त बार,
हो गया जनता में नाम पाय-पाय कै ॥

बनि गया मुनि, साधु, सन्यासी, महन्त, सन्त,
वर्णी ब्रह्मचारी व्रती भगत कहाय कै ।

‘मक्खन’ न आतम-अनातम को भेद जानो
चलि दिया कोरा नर जनम गमाय कै ॥

-कविवर मक्खनलाल जी