अरे जिया जग धोखे की टाटी | Are Jiya Jag Dhokhe Ki Tati

अरे जिया, जग धोखे की टाटी ।।टेक।।

झूठा उद्यम लोक करत है, जामें निश दिन घाटी।।1।।

जान-बूझ के अंध बने हैं, आँखन बाँधी पाटी ।।2।।

निकल जाएंगे प्राण छिनक में, पड़ी रहेगी माटी।।3।।

'दौलतराम' समझ मन अपने, दिल की खोल कपाटी ।।4।।

Artist - पं.दौलतराम जी

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:point_right:अर्थ - हे जीव! यह संसार भ्रम का पर्दा है। यहां लोग ऐसा खोटा व्यापार ( मिथ्या पुरुषार्थ) करते है जिसमे हमेशा हानि ही हानि होती है।
हे जीव! तू यहां जान बूझकर अंधा बना हुआ है, तूने अपनी आंखों पर पट्टी बांध रखी है।
तू देख लेना कि अंत मे एक दिन तेरे प्राण क्षणभर में निकल जाएंगे और यह मिट्टी यहीं पड़ी रह जायगी ।
कविवर दौलतराम जी स्वयं से कहते है कि हे मेरे मन ! तू अपने हदय के कपाट खोल और सत्य स्वरूप समझ :pray::ok_hand::pray::writing_hand:

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